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________________ ૬૮ भगवती सूत्रे पनत्ते' यथाऽष्टादशशते षष्ठोदेशके यावन् चतुःस्पर्शः प्रज्ञप्तः, तथाहि तत्रस्थं प्रकरणम्, 'सिय एगन्ने सिय दुदन्ने सिय विबन्ने सिय चवन्ने सिय पंचवन्ने । सि एगगधे सिप दुगंधे, सिय एगरसे जात्र पंचरसे, सिय दुफासे जाब चउफासे स्यात एकवर्णः स्यात् द्विवर्णः स्यात् त्रिवर्णः स्वात् चतुर्वर्णः स्यात् पञ्चवर्णः, स्यात् एकगन्धः स्याद् द्विगन्धः स्यादेकरसो यावत्पञ्चरसः स्यात् द्विस्पर्शो यावत् चतुः स्पर्श इति । 'जइ एगन्ने' यदि एकवर्णः पञ्चमदेशिकः 'एगवन्न रहवें शतक में छठे उद्देशे में यावत् वह चार स्पर्शोवाला होता है यहां तक जैसा कहा गया है वैसा ही यहां पर कह लेना चाहिये वहां का वह प्रकरण 'सि एगवन्ने सिय दुबन्ने सिय तिवन्ने सिय चवन्ने aिय पंचवन्ने लिय एगगंधे सिय दुगंधे लिय एगरसे जाव पंचरसे सिथ दुफा से जाव चडफाले' इस प्रकार से हैं सो इसी प्रकरण को यहां पर इस प्रकार से खुलासा किया गया है 'जह एगवन्ने' यदि वह पंचप्रदेशिक स्कन्ध एक वर्णवाला होता है तो वह इस सामान्य वर्णवत्य के कथन में इस प्रकार से एक वर्णवाला हो सकता है - 'सिय कालए य, सिय नीलए य, लिय लोहियए य, सिये हालिए य, सिप लुकिकल्लए य' काचित् वह कालेवर्णवाला भी हो सकता है ? कदाचित् वह नीलवर्णवाला भी हो सकता है २ कदाचित् वह लालवर्णवाला भी हो सकता है ३ कदाचित् वह पीछे वर्णवाला भी हो सकता है ४ अथवा कदाचित् वह शुक्लवर्णवाला भी हो सकता है पन्तत्ते' मढारमां शतम्भां छट्टा उद्देशानां यावत् ते यार स्पर्शवाजी छे. એટલે સુધીમાં જેવી રીતે કથન કર્યુ છે. તેજ પ્રમાણે સઘળુ કથન અહિયાં समभवु त्यांतु ते प्र२५ 'सिय एगवण्गे सित्र दुबन्ने सिय तिवण्णे खिय चउ वसिय पंचरणेसिव एग गंवे सिय दुर्गवे सिय एग रसे जाव पंचरसे सिय दुफासे जात्र चकासे' मा प्रभा अधु छे, मा अणुते सहियां या रीते तावत्रामा भ्यु छे. 'जइ एगवन्ने' ले ते पांय अहेशवाको धोव વાળો હોય તે તે આ સામાન્ય વર્ણનના કથનમાં નીચે કહ્યા પ્રમાણેના એક वावाजा होई शडे छे - श्चिय कालए य सिय नीलए य, सिच लोहियए य, सिय हाटिए य खिय सुक्किल्लए य' हाय ते अजा वर्षावाणी पायु होर्ध શકે છે. ૧ કદાચિત્ તે નીલવણુ વાળો પણ હોઈ શકે છે ૨ કદાચિત્ તે લાલ વણુ વાળો પશુ હાઈ શકે છે. ૩ કદાચ તે પીળા વઘુ વાળો પણ હાઇ શકે છે. ૪ અથવા કદાચ તે ધેાળા વણવાળો પણ હાઈ શકે છે. આ પ્રમાણેનું
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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