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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०२० उ०५ सू०२ पुद्गलस्य वर्णादिमत्वनिरूपणम् ६१५ कटुकश्च कषायश्च ४, कटुकश्च अम्लव ४, कटुकच मधुरश्च ४, कपायश्च अम्लश्च ४, कायश्च मधुरश्च ४, स्थात् अम्लच मधुरश्च ४, एवमेते दशद्विकसंयोगाः भंगा, पुनश्चत्वारिंशद् भवन्तीति । यदि निरसस्तदा स्यात् तिक्तश्च कटुकश्च कषायश्च १। भंग कर लेना चाहिये 'स्यात् तिक्तश्च मधुरश्च' यहां पर भी तिक्त और मधुरता के एकत्व और अनेकम्ब को लेकर ४ भंग पूर्वोक्त रूप से ही कह लेना चाहिये इसी प्रकार से स्थात् तिक्तश्च अम्लश्च' इन दो के संयोग में भी चार भंग इनके एकत्व और अनेकत्व को लेकर ४ भंग हुए हैं ऐसा जानना चाहिए इसी प्रकार से 'स्थात् तिक्तश्च मधुरश्च' यहां पर तिक्त और मधुर के मेल से एकत्व और अनेकत्व की अपेक्षा लेकर ४ भंग होते हैं ऐसा जानना चाहिये तथा कटुक और कषाय रस के मेल से इनकी एकता और अनेकता में भी ४ भंग होते हैं कटुक और अम्ल रस के मेल में इनकी एकता और अनेकता में ४ भंग होते हैं तथा कटु और मधुर रस के मेल में इनकी एकता और अनेकता को लेकर ४ भंग हुए हैं ऐसा समझना चाहिए इसी प्रकार से 'कषायश्च अम्लश्च ४ कषायश्च मधुरश्च ४' यहां पर भी ४-४ भंग हुए हैं तथा 'स्पात् अम्लश्च मधुरश्च ४' इस प्रकार के कथन में भी इनकी एकता और अनेकता को लेकर ४ भंग हुए हैं ऐसा जानना चाहिए इस प्रकार से दश द्विक संयोग के ४-४ भेद होने से सथ भंग मिलाकर ४० भंग ४४. तथा 'स्यात तितश्च मधुरश्च' तामा भने मधुर २सना मामाभन भनेपामा ५ यार मग पूर्वात रीत सम सेवा मे शत 'स्यात् तिक्तश्च अम्लश्च' तीमा भने माटा २सना योगमा ५ तेना તથા અનેકપણાને લઈને ૪ ચાર ભંગે કહ્યા છે તેમ સમજવું. તેજ પ્રમાણે 'स्गत् तिक्तश्च मधुरश्च' मडिया पर ती मने मधु२२सना ५मा तथा અનેકાણામાં ૪ ચાર ભંગ કહા છે તથા કડવા અને કષાય રસના રોગથી તેના એકત્વ અને અનેકપણામાં પણ ૪ ચાર ભગો કહ્યા છે. કડવા અને ખાટા રસના રોગમાં તેના એકપણું અને અનેક પણાને લઈને ચાર ભાગે કહ્યા છે. તથા કડવા અને મધુર રસના ચેપગથી તેના એકપણું અને અનેકपाने या२ मग मन छे. तेभ समायुमे शत 'कषायश्च अम्लश्च कषायश्च मधुरश्च' षाय- तुमने माटर रसना ३५! अन अने. કિપણથી ૪ ભંગે કહ્યા છે તથા કષાય–સુરા અને મધુર રસના એકપણુમાં भने मनपामा चार सय सभ०४ तथा 'स्यात् अम्लम्च मधुरश्च४' माटा અને મધુર રસના એકપણામાં અને અનેકપણમાં ૪ અંગે સમજવા. આ
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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