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________________ ५३० भगवती साकारोपयोगोऽनागारोपयोगश्च 'जे यावन्ने तहप्पगारा' ये चाप्यन्ये तथाप्रकाराः ये दर्शितास्तथा ये चान्ये तथा प्रकारास्ताशा आत्मविशेषण वाचकाः सामान्यतो विशेषतश्च पर्यायशब्दाः 'सव्वे ते' सर्वे ते पर्यायाः 'णणत्थ आयाए परिणमंति' नान्यत्रात्मनः परिणमन्ति आत्मानं वर्जयित्वा पते प्राणाविपातादयो न वर्तन्ते आत्मपर्यायत्वात् प्राणातिपातादीनाः पर्णयाणां पर्यायिणा सह कथंचिदेकरूपत्वात् आत्मरूपा एव ल आत्मनो भिन्नत्वेन न परिणमन्ति, अपि तु आत्मन्येव तेषां परिणामो भवति किम् ? इति मन; भगवानाह-'हंता' इत्यादि, 'हता गोयमा !' हन्त गौतम ! हन्तेति आमन्त्रणं स्वीकारे 'पाणाइवाए जाव सव्वे ते णणत्यायाए परिणमंति' प्राणातिपातो यावत् सर्वे ते ३ योग 'सागारोवोगे अणागारोवोगे' तथा साकार उपयोग एवं अनाकारोपयोग-ऐसा यह दो प्रकार का उपयोग तथा 'जे यावन्ने तहप्पगारा सत्वे ते णणस्थ आयोए परिणमंति' इसी प्रकार के जो और भी सामान्य विशेपरूप से आत्मविशेषणवाचक पर्याय शब्द हैं वे सब आत्मा को छोडकर क्या अन्यत्र परिणमित नहीं होते हैं ? यहां गौतम ने प्रभु से ऐसा प्रश्न किया है-हे भदन्त ! ये पूर्वोक्त प्राणातिपात आदि आत्मा की पर्यापरूप हैं क्योंकि ये आत्मा को छोडकर वे अन्यत्र परिणमित नहीं होते हैं तथा पर्यायपर्यायी के साथ कथंचित् एकरूप होने से पर्मपरूप आत्मारूप ही होता है अत: जय उनका परिणमन आत्मा पर्यायी के सिवाय अन्यत्र होना नहीं है तो ऐसी परिस्थिति में क्या उनका परिणाम आत्मा में ही होता है ? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा 'हंता गोयमा ! पाणाइवाए जाव लम्चे ते णण्णऋण योगा 'सागरोवओगे अणागारोवओगे य तथा सायास भने मना. पिया 2 री मे उपयोग तथा 'जे यावन्ने तहप्पगारा ते णण्णत्थ आयाए परिणमंति' से शत भाग ५ २ सामान्य विशेष ३थे मात्भाना વિશેષણ વાચક પર્યાય શબ્દ છે તે શબ્દો આત્માને છોડીને શું બીજે પરિસ્થમતા નથી? આ વિષયમાં ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછર્યું છે કે હે ભગવન આ પૂર્વોક્ત પ્રાણાતિપાત વિગેરે આત્માના પર્યાય રૂપ છે? કેમ કે આ આત્માને છોડીને બી જે પરિણમતા નથી. તથા પર્યાય પર્યાયીની સાથે કથંચિત એક રૂપ હેવાથી પર્યાય રૂ૫–આત્મા રૂપ જ હોય છે. તેથી જયારે તેનું પરિણમન આમા વિના બીજે થતું નથી તે એ સ્થિતિમાં શું એનું પરિણામ આત્મામાં જ થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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