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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०३ सू०१ प्राणातिपातादि आत्मपरिणामनि० ५२९ भवतीति । 'कण्हलेस्सा' कृष्णलेश्या 'जाव मुक्कलेस्सा' यावत् शुक्ललेश्या अत्र यावत्पदेन नील-कापोत-तैजस पद्म-लेश्यानां संग्रहो भवतीति, 'सम्मदिट्ठी३' सम्पदृष्टिमिथ्यादृष्टिमिश्रप्टिश्च 'चक्खुदंसणे' चक्षुर्दर्शनम् अचक्षुर्दर्शनम् अवधि दर्शनम् केवलदर्शनं चेति दर्शनचतुष्टयम् । 'भाभिणियोहियणाणे' आमिनिबोधिकज्ञानम् 'जाव विभंगनाणे' यावद् विभङ्गज्ञानम् यावत्पदेन श्रुतज्ञानावधिज्ञानमनःपर्यवज्ञानकेवलज्ञानानां मत्यज्ञानश्रुताज्ञानयोश्च संग्रहा, 'आहारसन्ना ४' आहारसंज्ञा१ भयसंज्ञा२ मैथुनसंज्ञा३ परिग्रहसंज्ञा च४ 'ओरालियसरीरे५' औदारिका हारकर वैक्रिय ३ तैजस४ कार्मण५ शरीराणि, 'मणोजोगे३' मनोयोगो १ बचोयोगः २ काययोगच ३ 'सागारोओगे अणागारोवओगे एक, नाम और गोत्र ये कर्म तथा-'कण्हलेस्सा जाच सुक्कलेसा' कृष्णलेश्या एवं यावत्पदगृहीत के अनुसार नील, कापोतिक, पीत पद्म और शुक्ल ये ६ लेश्याएं 'सम्मदिट्ठी तथा सम्यग्दृष्टि मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि ये तीन दृष्टियां 'चरखुदंसणे' तथा चक्षुदर्शन. अचक्षुदर्शन अवधिदर्शन और केवलदर्शन थे चारदर्शन 'आभिणियोहियनाणे जाव विभंगनाणे' तथा आभिनिवोधिज्ञान गृहीत यावत्पद के अनुसार সুনজাল ঘিন্নাল, ফলঃঘাল, কাল ফাল, স্বাজান और विभंगज्ञान थे पांच ज्ञान और ३ अज्ञान 'आहारसन्ना ४' आहार संज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परिग्रह संज्ञा ये ४ संज्ञाएं 'ओरा. लिय सरीरे ५' तथा औदारिक, वैशिआहारक, तैजल एवं कार्मण ये ५ शरीर मणजोगे ३' तथा अनोयोग, बचनयोग एवं फारयोग ये भने मात्र में म' तथा 'कण्हलेस्सा जाव सुकलेसा' वेश्या, नात લેશ્યા, કાપતિક વેશ્યા, પત લેશ્યા, પ લેશ્યા, અને શુકલ લેસ્યા, એ છે वेश्यामे। 'सम्मदिद्वी०' तथा सभ्यट, मिथ्याष्टि, मने भिष्टि से नष्टया 'चक्खुदसणे' तथा यक्षुहशन, अन्याशन, अधिशन, भने वसन से थार शन, 'माभिणियोहियणाणे जाव विभंगणाणे' मालिनि. माविज्ञान, भतिज्ञान, श्रुतज्ञान, मवधिज्ञान, मन:पय ज्ञान, ज्ञान, મતિઅજ્ઞાન, યુઅજ્ઞાન અને વિસંગજ્ઞાન આ પાંચ જ્ઞાન અને ત્રણ અજ્ઞાન 'आहारसंन्नो' माारसा, लयज्ञशा, मैथुनसशा, मने परियडशा मे यार सज्ञामा 'ओरालियसरीरे' तथा मोRs शरी२, वैठिय શરીર આહારક શરીર તૈજસ શરીર અને કાશ્મણ શરીર એ ५ पाय शरीर 'मणजोगे' तथा मनाया, क्यनया। मन ययास से 3
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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