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________________ प्रत्रिका टीका श०२० उ०२ सू०२ धर्मास्तिकायादिनामे कार्थकनामनि० ५२३ 'गोयमा' हे गौतम ! 'अणेगे अभिवयणा पन्नत्ता' अनेकानि अभिवचनानि पुद्रलास्तिकायस्य प्रज्ञवानि, 'तं जहा ' तद्यथा - पोग्गलेइ वा' पुद्गल इति वा, पोग्गलस्थिकाइ वा पुद्गलास्तिकाय इति वा, 'परमाणुपोग्गलेइ वा' परमाणुपुद्रक इति वा 'दुप्पएसिएइ वा' द्विपदेशिक इति वा, द्वौ प्रदेश अवयत्रतया विद्येते यस्य स द्विप्रदेशिकः, 'तिप्पएसिएइ वा' त्रिमदेशिक इति वा 'जाव असंखेज्जपfers ar' यावदसंख्येयप्रदेशिको वा अत्र यावत्पदेन चतुः पश्चादि दशान्तानां संख्यातानां च प्रदेशानां संग्रहो भवति 'अनंतपए सिए वा' अनन्तपदे शिक इति वा 'जे यावन्ने तह पगारा सव्वे ते पोग्गकत्थिकायस्स अभिवयणा' यानि चाप्यन्यानि उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' अणेगे अभिवयणा' हे गौतम! पुद्गलास्तिकाय के पर्यायवाची शब्द अनेक हैं 'तं जहा' जैसे- 'पोग्गलेह वा ' पुद्गल का स्वभाव पूरण गलनरूप होता है इस कारण इसका नाम पुद्गल भी है 'पोग्गलत्थकायेह वा' पुद्गलास्तिकाय भी है 'परमाणुपोग्गलेइ वा' परमाणुपुद्गल भी है 'दुप्पएसिएइ वा' द्विप्रदेशिक ऐसा भी है 'तिप्पएलिए बा' त्रिप्रदेशिक भी है 'जाव असंखेज्जपए सिपह वा' यावत् असंख्यातप्रदेशी भी है। यहां यावत् शब्द से चार प्रदेशिक, पांचप्रदेशिक आदि दश प्रदेशिक पर्यन्त के नाम और संख्यात प्रदेशी नाम गृहीत हुए हैं। तथा 'अनंतपएसिएइ वा' अनन्तप्रदेशिक ऐसा भी इसका नाम है तात्पर्य यह है कि ये सब पूर्वोक्त नाम पुद्गलास्तिकाय के पर्यायवाची शब्दरूप से कहे गये हैं । तथा 'जे घावन्ने सहयगारा सब्बे से पोग्गलत्धिकायस्स अभिवयणा' इनके जैसे हे गौतम! युद्धसास्तियना पर्यायवथ शो भने छे. 'तंजहा' ते मा प्रभा छे. 'पोगालेइ वा' युद्धसना स्वभाव पूर गवन इयं होय छे. तेथी तेनु' नाम ‘युद्गस' छे, 'पोगलत्यिकाएइ वा' युद्धबास्तिय पशु तेनु' नाम छे. 'परमाणु पोलेइ वा' परमाणु युद्ध पशु तेनु' नाम छे. 'दुप्पएखिए इवा' द्विप्रदेशि मेवु गु तेतु' नाम छे. 'तिप्पएसिएइ वा' त्रिअदेशि४ वुशु तेतु' नाम छे. 'जाव संखेज्जपएसिएइ वा' यावत् मस. ખ્યાત પ્રદેશી પશુ છે. અહિયાં યાવત શબ્દથી ચાર પ્રદેશિક, પાંચ પ્રદેશિક વગેરે વંશ પ્રદેશી સુધીના નામા અને સખ્યાતપ્રદેશી નામ थथ पुरायेस थे, 'तथा 'अणतपए सिएह वा' अनंत अहेशिठ वु તેનુ' નામ છે. કહેવાનુ તાત્પય એ છે કે-આ પૂર્વોક્ત બધા જ નામાં પુદ્ગલાસ્તિકાયના પર્યાયવાચી શબ્દ રૂપે કહેવામાં આવેલા છે. તથા જે यावन्ने तह पगारा सच्चे ते पोगलत्विकायरस अभिनयणा' माना लेवा भीन्न
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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