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________________ भगवतीसूत्रे 'ससरीरीइ वा२३' सशरीरीति-शरीरेण-औदारिकादिना सह विद्यते इति सशरीरी स्वावच्छिन्नभोगवत्वसंबन्धेन शरीरविशिष्ट इत्यर्थः २३, 'नायएइ वा२४' नायक इति वा नायक:-कर्मणां नेता२४, "अंतरप्पाइति वा२५' अन्तरात्मा इति वा अन्त:-भव्यरूप आत्मा न तु वाह्यशरीरादिरूप इति अन्तरात्मा,२५, 'जे यावन्ने तहप्पगारा' गनि चाप्यन्यानि तथामकाराणि-आत्मनः पर्यायवाचका शब्दाः, 'सब्वे ते जाव अभिवयणा' सर्वाणि तानि यावदभिवचनानि अत्र यावत्पदेन जीवान्तिकायस्येति संग्रहस्तथा च सर्वे तथाविधाः शब्दाः जीवास्तिकायस्य अमिवचनानि-पर्याया भवन्तीति भावः । 'पोग्गलस्थिकायस्स ण भंते ! पुच्छा' पुद्गलास्तिकायस्य खलु भदन्त ! पृच्छा हे भदन्त ! पुद्गलास्तिकायस्य कियन्ति अभिवचनानि भवन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-'पोयमा' इत्यादि, नाम स्वयंभू भी है। औदारिक आदि शरीरों से यह सुक्तिप्राप्ति के पहिले तक रहता है इसलिये इसका नाम लशरीरीभी है कर्मों का नेता होने से इसका नाम नायक भी है सम्यग्दर्शनादि पर्यायवाला हो जाने से यह शरीर को और निज को जुदा २ कर लेता है, इसलिये अन्त में यह आत्मारूप ही हो जाता है इसलिये इस का नाम अन्तरात्मा भी है बाह्य शरीरादिरूप यह नहीं है तथा इसी प्रकार के 'जे यावन्ने तहप्पगारा सन्चे ते जाच अभिवयणा' जो और भी नाम हैं वे सब इसी जीवास्तिकाय के पर्यायवाची शब्द हैं ऐसा जानना चाहिये यहां यावत्पद से 'जीवस्थिकायस्स' इस पद का संग्रह हुआ हैं अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-"पोग्गलत्यिकापस्त णं भंते ! पुच्छा' हे भदन्त ! पुद्गलास्तिकाय के अभिवचन पर्यायवाची शब्द कितने हैं? તેથી તેનું નામ “નાયક એવું પણ છે, સમ્યગ્દર્શન વિગેરે પર્યાયવાળા તે શરીરને અને પિતાને જુદા જુદા કરે છે. તેથી અંતમાં તે આત્મારૂપે જ થઈ જાય છે. તેથી તેનું નામ “અંતરાત્મા” એવું પણ છે આ બાહ્ય શરીર विगेरे ३थे नथी. तथा २ ३ 'जे यावन्ने तहप्पगारा सव्वे ते जाव अभिवयणा' भी ५२ नामछ त म मा स्तियन पर्याय पाय शो छ. म समन. माडियां यावत पहथी 'जीवस्थिकायस्व' से પદને સંગ્રહ થયો છે, ફરીથી ગૌતમ સ્વામી પુલાસ્તિકાયના સંબંધમાં પ્રભુને પૂછે છે કે'पोग्गलत्थिकायस्स गं भंते ! पुच्छा' ७ मशवन् yuestiना पर्यायवाय सण्हो ४८क्षा छ ? तना हत्तरमा प्रभु 23-'गोयमा! अणेगे अभिवयणा'
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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