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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०२ सू०१ आर्काशस्वरूपनिरूपणम् देसा' लोकाशाशः खलु भदन्त ! किं जीवा जीवदेशाः, 'एवं जहा वितीयसए अस्थिउद्देसए तहक्षेत्र इहवि साणिया' एवं यथा द्वितीयशतके दशमे अस्त्युद्देशके तथैव इहापि भणितव्यम् 'णबरं अभिलायो' नवरम् अभिलाप:-नवरम् विशेषः क्षेवलमेतावानेव यत्-तत्र-द्वितीयशतके 'लोयं चेत्र फुसित्ता णं चिदुई इत्यस्य स्थाने-'लोयं चेव ओगाहित्ता णं चिटई' इत्येवमभिलापो वक्तव्यः कियत्पर्यन्तमित्याह-'जाव' यावत् 'धम्मस्थिकाए णं' इत्यादि सूत्रमायाति तावत्पर्यन्त वक्तव्यम् । अत्र यावत्पदेन 'अलोयागासे णं मंते' इत्यादि अलोकाकाशनत्रं संपूर्ण पठनीयम् , अस्य व्याख्याऽपि तत्रैव द्रष्टव्येति । द्रव्य आकाश के जो ये भेद किये गये हैं वे आधेयभूतं द्रव्यों के वहां नहीं पाये जाने की अपेक्षा से ही किये गये हैं अर्थात जीवादिक द्रव्य आकाश के जितने भाग में पाये जाते हैं वह भाग लोकाकाश है और इससे अतिरिक्त भाग अलोकाकाश है। 'लोयागासे णं भंते ! किं जीवा जीवदेसा ?' हे भदन्त ! लोकाकाश क्या अनेक जीव रूप हैं ? या जीच देशरूप है ? इत्यादि प्रश्न का उत्तर 'एवं जहा पितियलए अस्थि उद्देसे तह चेव इह वि भाणियब" हे गौतम ! द्वितीयशतके १० वें अस्ति उद्देशक में कहे गये अनुसार है 'नवरं अभिलावो' परन्तु विशेषता केवल इतनी सी है कि वहां वितीयशतक में 'लोयंचेच फलित्ता णं चिट्ठह' ऐसा जो अभिलाप है उस अभिलाप के स्थान में 'लोयं चेव ओगाहित्ताणं चिटई' यहां ऐसा अभिलाप कहना चाहिये और यह अमिलोप 'जाव धस्लस्थिकाए णं' इस सूत्र पर्यन्त જીવ વિગેરે દ્રવ્ય આકાશના જેટલા ભાગમાં મળે છે, તે ભાગને કાકા ४. छ. 'लोयागासे णं भंते ! कि जीवा जीवदेसा' 8 लगव atta O. અનેક જીવ રૂપ છે? અથવા જીવ દેશ રૂપ છે ? વિગેરે પ્રકને ઉત્તર આપતા प्रभु ४९ छ -'एवं जहा वितियसए अस्थि उदेसे तह चेवं इहवि भाणियध्वं' के गौतम भी शतना १० समi Aasदेशमा प्रमाणे छ. 'नवरं अभिलावो' ५२' विशेषता ७ गरी ४ छ । त्यो भी शतमा 'लोयं चेव फुसित्ता णं चिइ' में प्रभायेन। २ मलिता५ छे, ते मलिदापना स्थान 'लोयं चेव ओगाहित्ता णं चिट्ठइ' मा प्रमाणे मलिताडवा नये. गर मा भलिता५ 'जाव धम्मस्थिकाए णं' मा सूत्र सुधी ४ नये. मलियां यापत् ५४थी में मतान्यु छ ४-अलोयागासे णं भवे त्या
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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