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________________ भगवती सूत्रे ४५६ णानि वक्तव्यानि न तु सर्वशरीरकरणं सर्वस्य जीवस्येति । 'कविहे णं भंते ! इंदियकरणे पन्नत्ते' कतिविधं खलु भदन्न । इन्द्रियकरणं प्रप्तम् भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम | 'पंचविहे इंदियकरणे पन्नत्ते' पञ्चविधंपञ्चमकारकम् इन्द्रियकरणं प्रज्ञप्तम् इन्द्रियमेवकरम्, इन्द्रियस्य वा करणम् इन्द्रियेण वा करणम्, इन्द्रिये वा करणमिति, 'तं जहा ' तद्यथा - 'सोइंदियकरणे' श्रोत्रेन्द्रिय करणम् | 'जान फासिंदियकरणे' यावत् स्पर्शनेन्द्रियकरणम्, अत्र यावत्पदेन घ्राणरसनचक्षुषामिन्द्रियाणां ग्रहणं भवति तथा च श्रोत्रेन्द्रियकरणघ्राणरसनचक्षुः इनके इन नाम के शरीरकरण होते हैं किसी २ छठे गुणस्थानवर्ती मुनिराज को तेजस फार्मण एवं औदारिकशरीर के साथ २ आहारकशरीर भी होता है इस कारण उनके इन नामके शरीरकरण होते हैं इस प्रकार सब जीवों को लव करण नहीं होते हैं ऐसा कहा गया है 'कविहे णं भंते ! इंदियकरणे० ' हे भदन्त । इन्द्रियकरण कितने प्रकार का कहा गया है ? तो इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु ने 'गोयमा ! पंचविहे इंदियकरणे पन्नन्ते' हे गौतम । इन्द्रियकरण पांच प्रकार को कहा गया है ऐसा कहा है- इन्द्रियरूप करण का नाम इन्द्रियकरण है अथवा इन्द्रिय का करना या इन्द्रिय द्वारा करना या इन्द्रिय के होने पर करना ऐसी यह इन्द्रियकरण शब्द की व्युत्पत्ति हे 'सोइंदियकरणे जाव फासिंदियकरणे' इन्द्रियकरण के पांच प्रकार ऐसे हैं-श्रोत्रेन्द्रियकरण, यावत् स्पर्शनेन्द्रियकरण यहां यावत् शब्द से 'घ्राण, रसना और चक्षु' इन ३ इन्द्रियों શરીરની સાથે ઔદારિક શરીર હોય છે. તેથી તેઓને એ નામવાળા શરીર અને કરણ હાય छे. કાઈ કાઈ છઠ્ઠા . ગુણુસ્થાનમાં રહેવાવાળા મુનિરાજેને તૈજસ, કાણુ અને ઔદારિક શરીરની સાથે આહારક શરીર પશુ હાય છે. તેથી તેને એ નામવાળા શરીર અને કરણ હોય છે. એ રીતે બધા જીવાને ખધા કરશેા હાતા નથી. તેમ કહેવામાં આવ્યુ છે. 'कइविण भंसे 1 इंदियकरणे०' हे भगवन् द्रिय४२ टला अारना अडेवाभां गावेस हे ? या प्रश्नना उत्तरमां अलु डे छे है- 'गोयमा ! पंचविहे इंदियकरणे पण्णत्ते' ४द्रिय४२ चांथ प्रारना अडेस छे.-६ द्रिय३५ छद्रिय छे. અથવા ઈદ્રિયનું કરવું તેનુ નામ ઈંદ્રિયકરણ छे. અથવા ઈદ્રિયદ્વારા કરવું અથવા ઈંદ્રિયેાના હૈાવાથી કરવુ. तेनु' नाम 'द्रिय४२ हे. मा द्रियार शब्डनी व्युत्पत्ति है. से इंदियकरणे जाव फासिंदिय०' द्रियना यांथ प्रार भी प्रमाणे छे. श्रोत्रेन्द्रियम ચાવત્ પ્રાણઇન્દ્રિયકરણ, રસના ઈદ્રિય કરણ, ચક્ષુ ઈંદ્રિય કરશુ સ્પેશ નામ
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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