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________________ heeन्द्रिका टीका श०१९ उ०६ सू०१ द्वीपसमुद्रादिनिरूपणम् ३९९ " 'केवइया णं भंते । दीवसमुद्दा' कियन्तः खलु भदन्त । द्वीपसमुदाः कियत्संख्याका द्वीपाः समुद्राच सन्तीत्यर्थः किं संठिया णं भंते ! दीवसमुद्दा' कि संस्थिताः खलु भद्रन्त द्वीपसमुद्राः द्वीपसमुद्राणाम् आकाराः कीदृशा इति द्वीपसमुद्राणामधिकरण संख्याऽऽकार विषयकः प्रश्नः भगवानाह - ' एवं जहा ' इत्यादि । ' एवं ' जा ' एवं यथा 'जीवाभिगमे दीवसमुद्देसो' जीवाभिगमे द्वीपसमुद्रोद्देशः 'सो चैत्र द वि स एव इहापि भणितव्य इत्यग्रेतनेन सम्बन्धः, जीवाभिगमद्वीपसमुद्रोद्देशश्चैवम् 'किमागारभाव पडोयाराणं भंते । दीवसमुद्दा पनचा 'किमाकारभाचमत्यत्रताराः खलु भदन्त ! द्वीपसमुद्राः प्रज्ञप्ता - कथिताः, भगवानाह - गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'जंबुद्दीवाइया दीवा' जम्बूद्वोपादिकाः द्वीपा : 'लवणाइया समुद्दा' लवणादिकाः समुद्राः जम्बूदीपमभृतयः द्वीपाः सन्ति तथा लवणसमुद्रप्रभृतयश्व समुद्राः सन्तीत्यर्थः । स च जीवाभिगमें हैं? तथा वे द्वीप और समुद्र कितने हैं ? और इन समुद्रों का आकार कैसा है ? इस प्रकार द्वीप समुद्रों के अधिकरण की संख्या का और आकार के विषय में यह प्रश्न किया गया है उत्तर में प्रभु ने कहा है । 'एवं जहा ' इत्यादि हे गौतम ! जीवाभिगम नाम के सूत्र में द्वीपसमुद्रोदेशक नामका एक उद्देशा है उसमें यह सब प्रकरण कहा गया है अतः वहीं से इस विषय को जान लेना चाहिये उस उद्देशे में एक ज्योतिषिक मण्डित उद्देश भी आया है सो उसे छोड देना चाहिये यहां पर नहीं कहना चाहिये जीवाभिगमीयद्वीप समुद्रोदेशक इस प्रकार से है'किमागारभाव पडोयाराणं भंते! दीवसमुद्दा पत्नत्ता ?' गोयमा ! बुदवाया दीवा, लवणाइया समुद्दा' यह द्वीप समुद्रोदेशक यहां पूर्ण કયા સ્થાન વિશેષમાં છે તથા એ દ્વીપ અને સમુદ્રો કેટલા છે? અને એ દ્વીપ અને સમુદ્રોને આકાર કેવા છે? આ રીતે દ્વીપ સમુદ્રોના અધિકરણુના સખ્યાના અને આકારના વિષયમાં આ પ્રશ્ન કરવામાં આવ્યા છે. તેના ઉત્તરમાં प्रभु ४ छे - ' एवं जहा' इत्यादि हे गौतम वाभिगम नाभना सूत्रभां દ્વીપસમુદ્રોદ્દેશક નામના ઉદ્દેશે આવેલ છે, તેમાં આ સમગ્ર પ્રકરણ કહેવામાં આવેલ છે. તેથી આ વિષય ત્યાંથી સમજી લેવા. આ ઉદ્દેશામાં એક ચૈાતિષ્ક મડિત ઉદ્દેશે! પણ આવેલા છે. તેને અડિયાં છેડી દેવા તે જીવાભિગમમાં भ्यास द्वीपसमुद्र उद्देशाभां या प्रभा आहेवामां आवे छे. - ' किमागारभाव - पडोयारा णं भंते । दीवसमुद्दा पण्णत्ता गोयमा ! जंणुदीवाइया दीवा, लवणाइया समुद्दा' हे गौतम આ દ્વીપસમુદ્ર ઉદ્દેશે. અહિયાં પૂરા કહેવાને
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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