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________________ भंगवतीस्त्र 'चम्मेदृदुहणमुष्टियसमाहयणिचियगत्तकाया न भण्णई' चर्मेष्टद्रुघणमुष्टिकसमाहतनिचितगात्रकाया न भण्यते तत्र चर्मेष्टद्रुघणमुष्टिकादिकानि व्यायामक्रियायामुपकारीणि उपकरणानि एभिः समाहतानि व्यायामप्रवृत्ती अतएव निचितानि च घनीभूतानि गात्राणि अंगानि यत्र स चमष्टद्रुघणमुष्टिकसमाइतनिचितगात्रकाया, एतद् विशेषणमत्र न वक्तव्यम् , स्त्रिया एतादृशविशेषणस्यासंभवाद् 'सेसं तं चे' शेषं तदेव एतद्भिन्नं यत् यत् तत्र विशेषणं तत् सर्वमेव वक्तव्यं कियत्पर्यन्तं विशेषणं वक्तव्यं तत्राह-जाय निउणसिप्पोरगया' यावत् "निपुणशिल्पोपगता सूक्ष्मशिल्पज्ञानसम्पन्नेति । अत्र यावत्पदसंग्रायः पाठो यथा'थिरगहत्थे दढपाणिपायपापितरोरुपरिणया, वलजमलजुगलपरिघणिभवाहू उरस्सबलसमण्णागया लंघणपवणजवणवायामसमत्था छेया दक्खा पता यह निपुण शिल्पोपगत हो उत्पन्न कला में कुशल हो इस पाठ के भीतर 'चम्मेद्हणतुष्टियसमाइयणिचियगत्तमाया न भण्णह' यह पाठ भी आया है, सो यह पाठ इल दासी के वर्णन करने में ग्रहण नहीं करना चाहिये क्योंकि स्त्रियों में इस प्रकार के व्यायाम क्रिया के साधक उपकरणों द्वारा पुष्ट गात्र होने का प्रायः अभाव सा रहा करता है। 'सेसं तं चेव' इस विशेषण के अतिरिक्त और जो २ विशेषण वहाँ पर हो वे सब यहां पर कह लेना चाहिये और ये सब विशेषण 'जाव निउणनिप्पोधगया' इस पाठ तक हैं इस विशेषण का अर्थ ऐसा है कि यह दासी सूक्ष्म शिल्पज्ञान से संपन्न थी यहां जो यावत्पद आया है उस से इस पाठ का यहाँ संग्रह हुआ है-'चिरग्महत्थे, ढ़पाणिपायपासपिठंतरोरुपरिणया तलजमलजुयलपरिणिभबाहू उरस्सपलसमण्णाया लंघण. हाय मडि सुधारा ५४ सय ४२ मा पानी भर 'चम्मेद्वदुणमुट्टिय समाहयणिचियगत्तकाया न भण्णई' मा प्रभाोना या४ मा छे ते पा४ ॥ દાસીના વર્ણનમાં ગ્રહણ કરવાનું નથી. કેમ કે સ્ત્રિોમાં આ રીતના વ્યાયામ ક્રિયાના સાધક ઉપકરણથી શરીરના અવયવે પુષ્ટ કરવાને અભાવ હોય છે. 'सेसं तं चेव' मा विशेष। शिवायना भीगत २२ विशेष यो डाय ते तमाम महियां सम वा. मन त विशेष। 'जाव निउणसिप्पोवगया' આ પાઠ સુધી ગ્રહણ કરવાના છે. આ વિશેષણોને અર્થ એ પ્રમાણે છે કે –આ દાસી સૂમ શિલ્પ જ્ઞાન વાળી હતી. અહિયાં જે ચાવત્પદ આપેલ છે, तनाथी नये प्रमाणेन५8 माडियां अडर शय छे. 'थिरग्गहत्थे, दृढपाणिपायपासपिटुंतरोरुपरिणया तलजमलजुयलपरिघणिभवाहू उरस्स बलसम
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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