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________________ ३१४ भगवती सूत्रे जीवाः मरणानन्तरं नरके गच्छन्ति नरके उत्पद्यन्ते तिर्यग्योनिकेषु मनुष्येषु देवेषु वा गच्छन्ति समुत्पद्यन्ते च इत्यादि प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि 'गोयमा ' हे गौतम | 'नो नेरइएस उपवज्जेति तिरिक्खजोणिएस उबवज्जति मणुस्सेसु उववज्जंति नो देवेषु उववज्जति' इत्यादि । नो नैरयिकेषु उत्पयन्ते अपि तु तिर्यग्योनिकेषु उत्पद्यन्ते मनुष्ययोनिषु उत्पद्यन्ते नो देवेषु उत्पद्यन्ते इत्यादि । हे गौतम ! पृथिवीकायिका जीवाः पृथिवीशरीरं परित्यज्य मृत्वा नरकेषु न गच्छन्ति, नैव तत्र नरके उत्पति लभन्ते किन्तु कदाचित् तिर्यक्योनौ गच्छन्ति तत्रैव उत्पतिं लभन्ते अथवा पुण्यप्रकर्षात् कदाचित् मनुष्यगती गच्छन्ति तत्रैव उत्पत्ति लभन्ते किन्तु न पुनर्देवेषु गच्छन्ति न वा तत्रोत्पतिं लभन्ते इति निर्गलितोऽर्थः न्तर क्या नरक में उत्पन्न होते हैं ? या तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं ? या मनुष्य में उत्पन्न होते हैं ? या देवगति में उत्पन्न होते हैं ? उत्तर में प्रभु ने कहा- 'गोधमा !' हे गौतम । पृथिवीकायिकजीव 'नो नेरह उबजेति०' नैरधिकों में उत्पन्न नहीं होते हैं किन्तु 'तिरिक्ख जोणिएसु० ' तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं । 'मणु.' मनुष्यगति में भी उत्पन्न होते हैं । परन्तु देवगति में उत्पन्न नहीं होते हैं । इत्यादि । तात्पर्य कहने का यह है कि पृथिवीकायिक जीव पृथिवीशरीर को छोडने के बाद मरकर लरकों में नहीं जाते हैं अतः वे वहां उत्पन्न भी नहीं होते हैं, किन्तु कदाचित् वे तिर्यञ्चगति में जाते हैं इसलिये वे वहीं पर उत्पन्न होते हैं, अथवा पुण्यप्रकर्ष से वे मनुष्ययोनि में भी जाते हैं अतः वे वहाँ उत्पन्न होते हैं । देवगति में ये मरकर नहीं जाते हैं अतः वहां इनकी उत्पत्ति भी नहीं होती है। इस प्रकार से पृथिवीका भनुष्योभां उत्पन्न थाय छे ? या प्रश्नमा उत्तरमा अनु छे है - 'गोयमा ! हे गौतम! पृथ्विायि व 'नो नेरइएस उववज्जंति०' नैरथि।भां उत्पन्न थता नथी. परंतु 'तिरिकखजोगिएसु०' तिर्थ ययोनिअमां उत्पन्न थाय छे.. 'मणु०' भनुष्यगतिभां पशु उत्पन्न थाय छे, परंतु हेवगतिभां उत्पन्न थता નથી. ઇત્યાદિ કહેવાનુ' તાત્પય' એવુ છે કે–પૃથ્વિકાયિક જીવ પૃથ્વિકાયિક શરીરને છેડીને તે પછી મરીને નરકામાં જતા નથી તેથી તેઓ ત્યાં–નરકમાં ઉત્પન્ન પણ થતા નથી. પરંતુ કોઈવાર તિય ચ ગતિએામાં જાય છે, તેથી તેઓ ત્યાંજ ઉત્પન્ન થાય છે. અથવા પુણ્યના ચૈાગથી તેઓ મનુષ્યમાં પણ જાય છે. તેથી તેએ ત્યાં પણ ઉત્પન્ન થાય છે . તેએ મરીને દેવગતિમાં જતા નથી.
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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