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________________ प्रमेयद्रिका टीका श०१९ उ०३ सू०१ लेइयावान् पृथ्वीकायिका दिजीवनि० ३१३ दूधातानामपि मरणं भवति इति भावः १९ । द्वादशमुद्वर्तनाद्वारमाह - ' ते णं भंते ! जीवा' ते पृथिवीकायिकाः खलु भदन्त । जीवाः 'अणंतरे' अनन्तरम् - मरणानन्तरमित्यर्थः 'उन्बद्वित्ता' उद्वृत्य 'कहिं गच्छति' कुत्र गच्छन्ति 'कर्हि उववज्जंति' कुत्र उत्पद्यन्ते हे भदन्त ! ते पृथिवीकायिका जीवाः मरणानन्तरं कुत्र गच्छन्ति कुत्र वा गत्वा उत्पद्यन्ते इति प्रश्नः, भगवानाह - ' एवं ' इत्यादि ' एवं उवहणा जदा बर्कनीए' एवद्वर्तना यथा व्युत्क्रान्तौ व्युत्क्रान्तिनामकं प्रज्ञापनायाः षष्ठं पदम् पृथिवीका विकजीवानामुद्वर्तना यथा प्रज्ञापनायाः षष्ठे व्युत्क्रान्तिपदे fear as surry ज्ञातव्या तथाहि - 'कि नेरइरसु जाव देवेसु' किं नैरयिकेषु यावत् देवेषु यावत्पदेन तिर्यक् मनुष्ययोर्ग्रहणम् हे भदन्त । किं पृथिवीकायिकाजी मारणान्तिक समुद्घात करके भी मरते हैं और मारणान्तिक समुद्घात नहीं करके भी मरते हैं । उद्वर्तनाद्वार - इस बारहवें द्वार को आश्रित करके गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है - 'ते णं भंते ! जीवा अनंतरं०' हे भदन्त । वे पृथिवीकायिक जीव मरणके बाद कहां जावेंगे ? कहां उत्पन्न होवेंगे ? उत्तर में प्रभु कहते हैं- एवं उन्हगा जहा वक्कंतीए०' हे गौतम ! प्रज्ञापना का व्युत्क्रान्ति नामका छट्ठा पद है लो इस पद में पृथिवीकायिक जीवों की उद्वर्तना के विषय में कथन किया गया है सो जैसा कथन उद्वर्तना के विषय में वहां किया गया है वैसा ही कथन यहां पर भी इसके सम्बन्ध में जानना चाहिये। वहां प्रभु से गौतम ने इस प्रकार का प्रश्न किया है - 'कि नेरइएस जाव देवेसु' यहां यावत्पाद से तिर्यञ्च मनुष्यों का ग्रहण हुआ है तथा च-हे भदन्त । पृथिवीकायिक जीव मरणान ૧૨ ઉદ્ધૃતનાદ્વાર–આ ખારમા દ્વારના આશ્રય કરીને ગૌતમ સ્વામીએ अमुने खेषु गूछयु छे है 'वे णं भंते जीवा अणंतरं०' हे भगवन् ते पृथ्वि. કાયિક જીવ મરણ પછી કયાં જશે? અને કયાં ઉત્પન્ન થશે? તેના ઉત્તરમાં अनु ! छे - एवं उत्रट्टगा जहा वक्कंतीए०' हे गौतम । प्रज्ञायना सूत्रना વ્યુત્ક્રાંતિ નામના છટ્ઠા પદ્યમાં પૃથ્વકાયિક જીવાની ઉદ્ધૃતાના વિષયમાં કથન કરવામાં આવ્યુ છે, તે જ પ્રમાણેનું કથન અહિયાં આ વિત્રયના સમધમાં પણ સમજી લેવું ત્યાં પ્રભુને ગૌતમ સ્વામીએ આ રીતે પ્રશ્ન ४रेस छे - 'कि' नेग्इएसु जाव देवेसु०' मडियां यावत् पहथी तिर्यन्य अने મનુષ્યા ગ્રહણ થયા છે. અર્થાત્ હે ભગવન પૃથ્વિકાયિક જીવ મરણુ પછી શું નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા તિયેાનિકામાં ઉત્પન્ન થાય છે ? કે भ० ४०
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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