SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०१० सू०३ पुद्गलानां वर्णादिमत्वनिरूपणम् २२३ 'अन्नमन्नबदाई' अन्योन्यबद्धानि गाढाश्लेपत्तः परस्पर संवद्धानि 'अन्नमनपुट्ठाई' अन्योन्यस्पृष्टानि स्पर्शनामात्रेण स्पर्शविषयीभूतानि 'जाव अन्नमनघडताए' अन्यो. न्यघटतया परस्परसमुदायरूपसम्बद्धतया इह यावत्पदेन 'अन्नमन्नो गाढाई अण्णमण्ण मिणेहपडिवद्धाई' अन्योन्यावगाढानि एकक्षेत्राश्रितत्वात् परस्पर लोलीभाव मातानि अन्योन्यस्नेहप्रतिवद्धानि-चिक्कणत्वेन परस्परं श्लिष्टानि इति संगृहीतं भवति । 'चिट्ठति तिष्ठति किमिति प्रश्नः, भगवानाह-'हंता अस्थि' हन्त सन्ति हे गौतम ! अस्या रत्नप्रभायाः पृथिव्याः अधोदेशे एतादृशविशेष णवन्ति द्रव्याणि सन्तीतिमाव: 'एचजाव अहे सत्तमाए' एवं यावत अधः सप्तम्याः पृथिव्याः विषयेऽपि ज्ञातव्यम् पूर्वप्रकारेणैव यथोक्तविशेषणविशिष्टद्रव्याणां स्थितिविषये प्रश्नः पूर्वोक्तोत्तरमकारेणैव उत्तरमपि ज्ञातव्यमिति । 'अस्थि णं भंते । सोहम्मस्स कप्पस्स अहे' सन्ति खलु भदन्त ! सौधर्मस्य कल्पस्याधः लुक्खाई' कर्कश, मृदु, भारी, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध एवं रूक्ष स्पर्शवाले हैं क्या 'अन्नमन्नघद्धाई' गाढश्लेष से परस्पर संबद्ध हुए । 'अन्नमनपुटाई परस्पर में स्पृष्ट हुए 'जाव अन्नमण्णघडत्ताए' यावत् परस्पर में समुदाय रूप से सम्बद्ध है क्या ? यहां यावत्पद से 'अन्नमबओगाढाई अण्णमण्णसिणेहपडिबद्धाई' इन पदों का ग्रहण हुआ है। उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हता अस्थि हां, गौतम! हैं इस रत्नप्रभा पृथिवी के नीचे इन विशेषणों से विशिष्ट हुए द्रव्य हैं। 'एवं जाच अहे सत्तमाए' इसी प्रकार का कथन यावत् सप्तमी पृथिवी के विषय में भी जानना चाहिये अर्थात् पूर्वोक्त प्रकार से ही यधोक्त विशेषणविशिष्ट द्रव्यों की स्थिति के विषय में प्रश्न करना चाहिये, और पूर्वोक्त प्रकार से ही उत्तर भी समझ लेना चाहिये । 'अस्थि णं भंते ! सोहम्मस्स भने ३१-दुमा २५शवाय छ ? "अन्नमन्नबद्धाई" मा मधथी ५२२५२ मधान "अन्नमनपुदाई" मन्यामन्य २५धिन "जाव अन्नमनघडताए" यावत् ५२२५२ समुदाय ३२ मधायेा छ ? माडियां यावत् यथा “अन्नमन्न भोगाढाई अन्नमन्नसिणेहपडिबधाई" मा पहो अडर या छ. म प्रश्नना उत्तरमा प्रभु ४ छ ?-"हंता अस्थि" &। गौतम! a प्रमाणे छे. अर्थात् भारल्ला पृथ्वीना नाय पूर्वेति विशेष वाणा द्रव्यो छ. "एवं जाव अहे सत्तमाए" मा प्रभानु ४थन अर्धा यापत् सातभी तमस्तमा पृथ्वीना સંબંધમાં પણ સમજી લેવું. અર્થાત્ પૂર્વોક્ત પ્રકારે જ પ્રશ્ન કરવા स. भने पूर्वरित प्रारथी St२ ५५ सभा मेवा, "अस्थि भते!
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy