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________________ भगवती सूत्रे २०२ उत्पत्तं योग्य: 'से तेणद्वेगं गोयमा ! एवं बुच्च भवियदव्यपुढवीकाइया' तत् नार्थेन गौतम! एवमुच्यते भव्यद्रव्यपृथिवीकायिका इति यः खल्ल तिर्यग्योनिको वा मनुष्यो वा देवो वा पृथिवीकायिकशरीरे उत्पत्ति योग्यो भवति भविष्यत्काले सतिर्यग्योनिको वा मनुष्यो वा देवो वा भव्यद्रव्यपृथिवीकायिकशब्देन व्यव ह्रियते इति भावार्थ: । 'आउकाइयत्रणस्सइकाइयाणं एवं चेव उवत्राओ' अकायिक वनस्पतिकायिकानाम् एवमेत्र उपपातो वक्तव्यः । एवं भव्यद्रव्यापूकायिकत्व ं भव्यद्रव्यवनस्पतिकायिकत्वं विज्ञेयम् यः खलु पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको मनुष्यो वा भविष्यत्काले अष्कायिकेषु वनस्पतिकायिकेपु वा उत्पत्ति योग्यो स पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको वा मनुष्यो वा देवो वा भव्यद्रव्याकायिकतया भव्यद्रव्यवनस्पतिकायिकतया वा व्यवहारयोग्यो भवन् भव्यद्रव्याकायिकपदेन भव्ययह है कि जो तिर्यञ्च अथवा मनुष्य या देव भविष्यत्काल में पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होने के योग्य होता है वह तिर्यग्योनिक जीव अथवा मनुष्य या देव भव्यद्रव्यपृथिवीकायिक इस शब्द से व्यवहृत किया जाता : है । इसी कारण हे गौतम ! ' एवं बुच्च भवियदव्यपुढ़वीकाइया' मैंने उसे भव्यद्रव्यपृथिकाधिक कहा है । 'आउकाडयावणस्सइकाइया णं एवंचेव उववाओं' भव्यद्रव्य अकायिक और भव्यद्रव्यवनस्पतिकायिक भी इसी प्रकार से जानना चाहिये अर्थात् जो पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अथवा मनुष्य या देव भविष्यत्काल में अष्कायिक में अथवा वनस्पतिकायिक में उत्पन्न होने के योग्य होता है वह पञ्चेन्द्रियतिर्यश्च, अथवा मनुष्य या देव भव्यद्रव्य अकायिकरूप से या भव्यद्रव्य वनस्पतिकायिकरूप से व्यवहार करने योग्य होता हुआ भव्यद्रव्य अकायिकपद से या भव्यद्रव्यवनस्पतिकायिक पद से व्यवहार में कहा हे गौतम तेनु र मे छे -- तिर्यय, अथवा દેવ ભવિષ્યમાં પૃથ્વીકાયિકપણાથી ઉત્પન્ન થવાના હોય તે તિય‘ચાનિક મનુષ્ય અગર જીવ અથવા મનુષ્ય અથવા દેવને—ભન્યપૃથ્વીકાયિક એ શબ્દથી व्यवहार हैश्वामां आवे छे. ते अरथी हे गौतम " एवं वुच्चइ भवियदव्वपुढवीकाइया" भे तेमाने लव्य द्रव्य पृथ्वीअयि उद्या छे. “आउकाइया वणस्सइकाइयाणं एवं चेव उववाओ" भव्यद्रव्य अयुमाथि અને ભવ્યદ્ર વનસ્પતિકાયિકોને પણ આાજ રીતે સમજવા. અર્થાત્ જે પ'ચેન્દ્રિય તિર્યંન્ચ મનુષ્ય અથવા દેવ ભવિષ્યકાળમાં અાયિકમાં અથવા વનસ્પતિકાયિકમાં ઉત્પન્ન થવાના હાય છે, તે પચેન્દ્રિય તિર્યંચ, મનુષ્ય અથવા દેવ ભવ્ય દ્રવ્ય અાયિકપણાથી અથવા ભવ્ય દ્રવ્ય વનસ્પતિકાયિકપણાથી વ્યવહારમાં
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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