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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०९ सू० १ भव्यद्रव्यनारकादिनां निरूपणम् २०१ भव्यद्रव्यनैरयिक इति कथ्यते एतेन कारणेन गौतम ! कथयामिः यत् सन्ति भन्यद्रव्यनैरयिका इतिभावः । 'एवं जाव थणियकुमाराण' एवं यावत् । स्तनितकुमाराणाम् उपपातो वाच्यः, अत्र यावत्पदेन असुरकुमारादारभ्य वायुकुमारान्तानां ग्रहण भवति । 'अस्थि णं भंते !' सन्ति खलु भदन्त ! 'भवियदव्यपुढवीकाइया भवियदव्वपुढवीकाइया' भव्यद्रव्यपृथिवीकायिकाः भव्यद्रव्यपृथिवीकायिका, भगवानाह'गोयमा हंता अस्थि' गौतम ! हन्त सन्ति 'से केणटेणं भंते एवं बुच्चइ भवियदव्यपुढवीकाइया' तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते भव्यद्रव्यपृथिवीकायिका भव्यद्रव्यपृथिवीकायिका इति कथने किं कारणमिति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'जे भविए' यो भव्यः-भवितु योग्यः, का कुत्रोत्पत्तुं योग्यस्तत्राह-निरिक्ख' इत्यादि। 'तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा' नियंग् योनिको वा मनुष्यो वा देवो वा 'पुढवीकाइएमु उववज्जित्तए' पृथिवीकायिकेषु कारण भविष्यकाल में उनका नारक पर्याय से उत्पन्न होना है । 'एवं जाव थणियकुमाराण' इसी प्रकार से असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमारों तक का उपपात कह लेना चाहिये। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'अस्थि णं भंते ! भवियवपुढ़वीकाइया भषियव्यपुढचीकाइया'२ हे भदन्त ! भव्यद्रव्यपृथिवीकायिक नैरयिक है क्या ? उत्तर में प्रभु कहते हैं--'गोयमा! हता, अस्थि' हां, गौतम ! भव्यद्रव्यपृथिवीकायिक है । अब पुनः गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'से केण?णं भंते एवं वुच्चा भवियध्यपुढवीकाइया' हे भदन्त ! भव्यद्रव्यपृथिवीकायिक २ इस प्रकार से कहने में क्या कारण है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा!जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मणुस्ले वा देवे वा पुढवीकाइएस्सु उववज्जित्तए' हे गौतम! कारण ना२४ पर्यायथी उत्पन्न थवानु छ. "एवं जाव थणियकुमाराण" मा शत અસુરકુમારથી આરંભીને સ્વનિતકુમારના ઉપપાતના સંબંધમાં કથન કરી લેવું. शथी गौतम स्वामी प्रभुने मे पूछे छे 8--"अत्थि णं भंते ! भवि यदव्यपुढवीकाइया" भवन् सव्यद्रव्यपृथ्वी २ छ ? तना उत्तरमा प्रभु ४९ छ ?--"हंता अत्थि" &i गीतम! सभ्यद्रव्यपृथ्वी यि छे. तेनुं २६५ ongपानी छाथी गीतभस्वामी प्रभुने पूछे छे -"से केणटूठेणं भंते एवं वुच्चइ भवियदवपुढवीकाइया" २७ भगवन् मन्यद्रव्यवयि २ मे शत ४ानु शु. २९j छ ? तेन त्तरमा प्रभु ४ छे -"गोयमा! जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा देवे वा पुढवीकाइएसु उववज्जित्तए" - भ० २६
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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