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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका शं०१८ उ०८ सु०२ छद्मस्थानां द्विप्रदेशादिस्कंधज्ञाननि ० १८१ महावीरेण 'एवं वृत्ते समाणे' एतत् प्रशंसावाक्येन उक्तः कथितः सन् 'हट्टतुट्टे' 'हृष्टतुष्टः ' 'समणं भगवं महावीरं' श्रमणं भगवन्तं महावीरम् 'वंदह नमसई ' वन्दते नमस्यति 'वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी' वन्दित्वा नमस्थित्वा एवं वक्ष्यमार्ण प्रश्नवाक्यम् अवादीत् उक्तवान् किमवादीत् १ तत्राह - 'छउमत्ये' इत्यादि । 'छउमत्थे णं भंते ! छद्मस्थः खलु भदन्त | 'मणुस्से' मनुष्यः छद्मस्थ इह निरतिशय एव ग्राह्यो न तु सातिशय इति 'परमाणुयोग्गलं किं जाणइ पासह' परमाणुपुदलम् - परमाण्वात्मकं सूक्ष्मपुद्गलं वर्णस्पर्शगन्धरसवन्तं पदार्थविशेषं किं जानाति पश्यति ? ' उदाहो न जाणइ न पास?' उताहो अथवा न जानाति न पश्यति, न जानाति - इत्यज्ञानमभिधीयते न पश्यति इत्यदर्शनमभिधीयते तथा च छद्मस्थमनुव्याणां परमाण्वादि सूक्ष्मपदार्थविषयके ज्ञानदर्शने भवतो नवेति प्रश्नाशयः, भगमोदना की तब बडे ही अधिक हृष्टतुष्ट हुए और उसी समय उन्होंने 'समणं भगवं महावीरं ० ' श्रमण भगवान् महावीर को वंदना की और नमस्कार किया ' वंदित्ता नमसित्ता०' वन्दना नमस्कार करके फिर उन्होंने प्रभु से इस प्रकार पूछा 'छउमत्थे णं' इत्यादि' हे भदन्त ! जो मनुष्य छद्मस्थ है । अतिशयधारी नहीं है । क्योंकि यहां पर उसीका ग्रहण हुआ है ऐसा निरतिशयछद्मस्थ मनुष्य परमाणुरूप सूक्ष्म पुद्गल को वर्ण रस, गंध और स्पर्शयुक्त पदार्थ विशेष को क्या जानता और देखता है ? 'उदाहो - न जाणई' अथवा नहीं जानता नहीं देखता है ? 'न जाणई' इस पद से उसे उस विषयक अज्ञान कहा गया है । और न 'पासह ' इस पद से उसके अदर्शन कहा गया है इल प्रश्न का आशय ऐसा है कि जो छद्मस्थ मनुष्य हैं, उनको परमाणु आदि सूक्ष्मકર્યું" ત્યારે ભગવાન્ ગૌતમ સ્વામીએ ઘણુા જ હૃષ્ટ તુષ્ટ અને પ્રસન્ન ચિત્તવાળા थाने "समणं भगव' महावीरं" श्रमण लगवान् महावीरने वढना हरी गने नमस्कार र्ध्या "व ंदित्ता नमखित्ता" वहना नमस्कार उरीने ते पछी तेथे प्रभुने या प्रमाणे पूछयुं – “छउमत्थे णं" इत्याहि हे भगवन् ने मनुष्य छद्मस्थ छे, અર્થાત્ અતિશય ધારી નથી. એવા નિતિશય ધારી છદ્મસ્થ મનુષ્ય પરમાણુ રૂપ સૂક્ષ્મ પુદ્ગલને વણુ, ગંધ, રસ અને સ્પવાળા પદાર્થી વિશેષને શુ लये छे ? भने देखे है ? अथवा "न जाणइ" अथवा लघुता नथी अने डेजता नथी. 'न जाणइ' से पहथी तेने ते विषयतुं अज्ञानयशु मतावेस छे, भने “न पाखइ” से पहथी तेतु महर्शन मतावेस छे. आ अश्न पूछવાના હેતુ એ છે કે--જે છદ્મસ્થ મનુષ્ય છે, તેને પરમાણુ વિગેરે સૂક્ષ્મ પદા' સંબધી વિષયનું જ્ઞાન દશન હાય છે, કે નથી હાતુ ? આ પ્રશ્નના
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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