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________________ भगवती सूत्रे ર , " च्छित्ता मदुयं समणोवासयं एवं वयासी' उपागत्य मद्भुकं श्रमणोपासकम् एवंवक्ष्यमाणप्रकारेण अवादिपुस्ते अन्ययुथिकाः किमुक्तवन्तोऽन्ययूथिका मद्भुकं तत्राह - ' एवं खलु' इत्यादि । एवं खलु मया' एवं खलु मद्रुक !' तब धम्मायरिए' तव धर्माचार्यः 'धम्मो देसए समणे णायपुत्ते ' धर्मोपदेशकः श्रमणो ज्ञातपुत्रः ' 'पंच अत्थिकाए पम्नवेइ' पश्चप्रकारकान् अस्तिकायान् धर्मास्तिकायादीन् पदार्थान् प्रज्ञापयति 'जहा सत्तमे सर अन्नउत्थि उद्देसए' यथा सप्तमशते अन्ययूथिको देश के 'जाब से कहमेयं मद्द एवं ' यावत् तत् कथमेतत् मनुक ! एवम् हे मनुक ! तव धर्माचार्यः पञ्चास्तिकायान् धर्मास्तिकायादीन मज्ञापयति एतत् कथं घटते धर्मास्तिकायादीनामदृश्यत्वेन तत् परिज्ञानासंभवात् इत्यादिकं सर्व सप्तमशतकीयवृत्तान्तम् अवगन्तव्यम् । 'तरणं से मदुए समणोवासए' ततः खलु स मदुकः श्रमणोपासकः 'ते अन्न उत्थिए एवं क्यासी' तानन्ययूथिकाने वमवादीत् अन्ययूथिकेन 'उवागच्छित्ता मदुयं समणोवासयं एवं वयासी' वहां पहुंच कर उन लोगों ने उस मद्रुक श्रावक से ऐसा कहा - 'एवं खलु मदुया ! तव धम्मायरिए, धम्मो देस समणे णायपुत्ते पंच अस्थिकाये पनवे' हे मदुक ! तुम्हारे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्रने जो पांच प्रकार के धर्मास्तिकायादिक पदार्थ कहे हैं । 'जहा सत्तमे सए अन्नउत्थिउद्देसए' जैसा कि सप्तम शतक के अन्ययूथिकोद्देशक में प्रकट किया गया है। 'जाव से कहमेयं मनुया ! एवं' सो हे मद्रुक ! यह उनका कथन कैसे संगत माना जा सकता है ? क्योंकि धर्मास्तिकायादिक पांच अस्तिकायका कथन यहां पर सप्तनशतक में जैसा कहा गया है वैसा कह लेना चाहिये। 'तए णं से मदुए समणोवासए ते अन्नउत्थिए एवं वयासी' तब उस मदुक च्छित्ता मदुयं खमणोवासयं एवं वयासी" त्यां कहने ते भ६९ श्रावने भा प्रभाो ४ह्यु' “एवं खलु मया तवधम्मायरिए धम्मोवदेसए णायपुत्ते पंचअस्थिकाए पन्नवेइ" डे भए तभारा धर्भायार्य भने धर्मोपदेशः श्रभय ज्ञातपुत्रे यांय प्रारना ? धर्मास्तिय विगेरे पहार्थे उद्या छे " जहा सत्तमसप अन्न उत्थि उद्देस ए” सातभा शतना अन्ययूथिङ उद्देशामां ने प्रभावाभां मान्यु छे. ते प्रमाणे सभवु " जाव से कहमेयं मदुया ! एवं" तो મચ્છુક તેનું' આ પ્રમાણેનુ' કથન કેવી રીતે સંગત માની શકાય ? કેમ કે ધર્માસ્તિકાય વિગેરે પાંચ અતિકાયાનું કથન અહિયાં સાતમાં શતકમાં જે પ્રમાણે धुं छे, ते प्रभाव सघणु अथन समन्वु "तए णं से मदुए समणोवासप ते अन्नउत्थि एवं वयासी" ते अन्य यूधिडोगे न्यारे पूर्वोत प्रारथी भ
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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