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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १६ उं० २ सू० २ जीवानां जराशोकादिनिरूपणम् ६१ मीत्यर्थः, 'इति कट्ठ' इति कृत्वा-इत्युक्त्वा 'समणं भगवं महावीरं चंदइ नमसह श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति, 'बंदित्ता नमंसित्ता तमेव दिव्यं जाणविमाणं दुरुहइ' वन्दिता नमस्रिता तमेव दिव्यं यानविमानमारोहति । 'दुरुहित्ता जामेव दिसं पाउन्मूए' आरुह्य यामेव दिशमाश्रित्य प्रादुर्भूतः समागतः 'तामेव दिसं पडिगए' तामेव दिशं प्रतिगता, 'भंते त्ति भगवं गोयमे भदन्त ! इति भगवान् गौतमः 'समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ' श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति 'वंदित्ता नमंसित्ता' वन्दित्वा नमस्थित्वा 'एवं क्यासी' एव मवादीत्, 'जं णं भंते सक्के देविदे देवराया' यत् खलु भदन्त शक्रो देवेन्द्रो देवरानः 'तुम्भेणं एवं वदइ' तुभ्यमेवं वदति 'सच्चेणं एसम?' सत्यः खलु एपोअर्थः, भगवानाह-'इंता सच्चे हंत सत्यः, हे भगवन्नित्येवं भगवन्तं संबोध्य करता हूं। ऐसा कहकर उसने 'समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसई' श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की-नमस्कार किया। 'वंदित्ता नमंसित्ता तमेव दिव्वं जाणविमाणं दुरुहह' वन्दना नमस्कार करके वह उसी अपने दिव्य यान विमान पर चढा । 'दुरुहिता जामेवदिसं पाउ. भूए, तामेव दिस पडिगए' चहकर वह जिस दिशा से आया था उसी दिशा की ओर चला गया अर्थात जहां से आया था वहीं पर पीछे चला गया । भते त्ति भगवं गोयमे समर्ण भगवं महावीरं बंदर, नमसइ' इसके बाद हे भदन्त ! इस प्रकार कहकर भगवान् गौतमने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना की नमस्कार किया-वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी' बन्दना नमस्कार कर फिर उन्होंने इस प्रकार पूछा-'जंण भते! सक्के देविंदे देवराया तुम्मेण एवं वदह' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवनमसइ" श्रम मवान महावीरने पहना 30 नमार या, "वदित्ता नमंसिचा तमेव दिव्वं जाणविमाणं दुरुहर "बहन नमार शन ते पोताना मेर यान् विमान ५२ गिया. “दुरुहिता जामेव दिसं पाउन्भए, तामेव दिसं पडिगए " यान् विमान ५२ अनि त! २ हशा तथा माया त त श त२६ पछी यादया गया. " भवेत्ति भगव गोयमे समणं भगव' महावीर वंदइ नमसइ" ते ५०ी गवन् ! को प्रमाणे हीन ભગવાન ગૌતમે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદન કરી નમસ્કાર કર્યો. " वंदिता ! नमंसित्ता एव वयासि" ना नमार शन .५छ तभी भगवनने या प्रमाणे ५७यु " जेणं भवे ! सक्के देविंदे देवराया तून्भेण एवं' वइ " मापन् । हेवेन्द्र हेरा शई तभने २ मे
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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