SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १६ उ० २ सू०२ जीवानां जराशोकादिनिरूपणम् १९ उग्गहे पण्णत्ते' कनिविधः खलु भदन्त । अवग्रहः प्रज्ञप्ता, अमग्रहणम् अवग्रह , साधुग्रहणयोग्य वसति तृणकाष्ठादिकं वस्तुविषयिणी आज्ञा कतिपकारकः कथित इति, भगवानाह-'सका पंचविहे उग्गहे पणत्ते' हे शक ! पञ्चधिोऽवग्रहः मज्ञप्ता 'जहा' तद्यथा-'देविंदोग्गहे' देवेन्द्रावग्रहः देवेन्द्रः शक्र ईशानो वा तस्य अवग्रहो दक्षिणं लोकार्द्धम् उत्तरं वा लोकार्द्धम् इति देवेन्द्रावग्रहः । 'रायोग्गहे' राजाव- . ग्रह:-राजा चक्रवर्ती भरतादिस्तस्यावग्रहः पटूखण्डभरवादिक्षेत्रम् अयमेव राजावग्रहः 'गाहावइ उन्महे' गावापत्यवग्रहः, तत्र गाथापतिर्माण्डलिको राजा तस्या- - वग्रहः स्वकीयं स्वकीयं मण्डलमिति आधिपत्यविषयम् भूमिखण्डादिकम् गाया- . पत्यवग्रहः, 'सागारिय उग्गहे' सागारिकारग्रहः-गारो गृहं तेन सह वर्तते इति : पण्णत्ते' हे भदन्त ! अवग्रह कितने प्रकार का कहो गया है। साधुजनों, को ग्रहण करने के योग्य जो बलनि, तथा तृणकाष्ठ आदिरूपवस्तुएँ .. है, उन वस्तुओं को उन्हें ग्रहण करने की आज्ञा प्रदान करना इसका-: नाम अपग्रह है । यह अवग्रह 'सरका पंजरिहे पण्णत्ते' हे शक ! पांच ... प्रकार का कहा गया है । 'तं जहा जो इस प्रकार से है-'देविंदोग्गहे' : देवेन्द्रावग्रह शक्र अथवा ईशान का अवग्रह दक्षिण लोकाई के स्वामी शक्र हैं तथा उत्तर लोकाई के स्वामी ईशानेन्द्र है इसलिये वह.. देवेन्द्रावग्रह है। चक्रवर्ती-भरत आदिका जो अपग्रह है वह भरतादि क्षेत्र के ६-६ खण्डों में होता है इसका नाम राजापग्रह... है। माहावइ उग्गहे' माण्डलिक राजाका नाम गाथापति है,,* इसका अवनइ अपने मण्डलमें होता है, क्योंकि वह यहां का .. अधिपत्ति होता है । अंगार नाय गृह को है इल गृह से जो युक्त होता काविहेणं भंते ! उगहे पण्णत्ते" सगवन् ! म मा alરના કહ્યા છે? સાધુ જનોને ગ્રહણ કદવા ગ્ય જે વસતી તૃણકાષ્ટ વિગેરે રૂપ વસ્તુઓ છે. તે વસ્તુઓને ગ્રહણ કરવાની આજ્ઞા પ્રદાન કરવી તેનું नाम अवघड छे. मा अवयड 'सक्का पंचविहे पण्णत्ते" श पांय १२ना हा छ. “ त जहा" २ मा रत छ. “ देवि दोग्गहे" हवे. દ્રાવગ્રહ શક અથવા ઈશાનનો અશહ દક્ષિણ લોકાર્ધમાં અથવા ઉત્તર લેકાર્ધમાં છે એટલે તે દેવેદ્રાવગ્રહ છે. ચક્રવતિ–ભરત આદિનો જે અવગ્રહ छे से सतना "मां थाय छे. तेन नाम रात छे “गाहाषइ उग्गहे " मालिs शनु नाम थापति छे तेना अब पातीતાના મંડળમાં થાય છે કેમકે તે ત્યાં અધિપતિ હોય છે. અગાર નામ ઘરનું છે તે ઘરવાળો જે હોય તે સાગાર કહેવાય છે. તે સાગાર જ સાગા
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy