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________________ भगवतीस्ने भोगभोगान् । इति । 'इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दी' इमं च खलु केवलकल्पं संपूर्णम् जंबूद्वीप होपर 'विउलेणं ओहिणा आगोएमाणे आमोएमाणे' विपुलेनारधिना आभोगयन् आभोगयन जानन् जानन् 'पायइ समणं भगवं सहावीर जंबुद्दी ये दीवे' पश्यति श्रमणं भगवन्तं महावीरं जंबूद्वीपे द्वीपे, 'एवं जहा ईसाणे तइयसए तहेव सबके वि' एवं यथा ईशानरतृतीयशतके तथैव शक्रोपि तृतीयशतकीयपथगोद्देशके राजपनीयातिदेशेन कथितस्तथैवेह शक्रविषयेपि विचारों ज्ञातव्यः ईशानबदेवशकस्यापि विशेषगादिकं सर्व वाच्यम् । किन्तु 'नवरं आभियोगे णो सदावेई' नवरम् आभियोगिकान् देवान् न शब्दयति । अथ शक्रेशानको धम्य दर्शयति-पायत्ताणियाहिनई इरी' पदान्यनोकाधिपतिहरिः, शक्रस्य पहात्यनीकाधिपतिहरिः, हरिणैगमेपी ईशानस्य तु लघुपराक्रमः। 'सुघोसा घंटा' आदि वादिनों की तुमुलध्वनिपूर्वक दिव्य कामभोगों को भोगता हमा अपने समय को निकालता रहता है। 'हमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीचं दीव विउलेणं ओहिणा ओलोएमाणे २ पासा मणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीये' उल समय यह अपने विस्तृत अअधिज्ञान द्वारा इस समस्त जंबूद्वीप का निरीक्षण करने में उपयुक्त था । हसटे उसने ऐसा देखा कि जबूद्वीप नामके द्वीप में अक्षण भगवान महावीर विना. जमान है । 'एवं जहा इसाणे तइयलए नहेव सक्के चि' तृतीय शतक के प्रथम उद्देशक में राजप्रश्नीय सूत्र के कथनानुसार जैसा कथन इन्द्र के विषय में आया है, उसी प्रकार का कपन शक्र के सन्बन्ध में भी कर लेना चाहिये । किन्तु यहाँ 'अभियोगे जो सदाने' वह शक आभियोगिक देवों को नहीं बुलाता है । तथा 'पायत्ताणिणहिवईहरी'. शक का पदात्पनीकाधिपति हरितारिणैगमेषी है और ईशान का लघु हिन्याभरागाने लागवता पोताना सभय ५सार श २ . 'इम च ण केवलकप्पं जंबुदिवं दीवं विउलेण ओहिणा आभोएमाणे (२) पासइ समण भगवं महावीरं जवुद्दीवे दीवे" त सभये श पोताना विश भवधिज्ञान દ્વારા આ સંપૂર્ણ જબૂદ્વીપનું નિરીક્ષણ કરવામાં પ્રવૃત્ત હતા. તેથી તેમણે એવું જોયું કે જંબૂદ્વીપ નામના દ્વીપમાં શ્રમણ ભગવાન મહાવીર વિરાજમાન છે. “ एवं जहा इसाणे तइयखए तहेव सक्कोवि"त्री शतना पडसा देशाम રાજકશ્રીય સૂત્રના કથન અનુસાર જેવું કથન ઈશાન ઈન્દ્રના વિષમાં આવ્યું છે તેજ રીતનું કથન શકના સંબંધમાં પણ સમજી લેવું પરંતુ અહિંયાં " आभिओगे जो सदावेइ" श मनियोग वान मालावत नथी तथा "पायत्ताणियाहिवइ हरी" ना पहात्यनजाधिपती हरी गिमेषी
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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