SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ .४२ . भगवतीस्ते जीवाणं जाव वेमाणिए' नवरं सर्वजीवानाम् यानद्वैमानिका, वचोयोगापेक्षया काययोगे एतारानेव भेदः यत् कायस्तु सर्वजीवसाधारणोऽतः सर्वजीवदण्डके काययोगमाश्रिन्य विचार: करणीयः मनोवचनं तु न सर्वजीवसाधारणमतः तद्विपये यस्य यदस्ति तवैव तद्विचारः करणीयः । कियत् पर्यन्तमयं विचारस्तवाह'जाव वेमाणि' याबद्वैमानिका वैमानिकदेवपर्यन्तम् काययोगमाश्रित्य विचारः करणीय इति । 'सेवं भंते से भंते त्ति' तदेवं भदन्त तदेवं भदंत इति, हे 'नवरं लब्धजीवाण जाच वेवाणिए वचनयोग की अपेक्षा इस काययोग के विचार में यदि कुछ अन्नर है तो वह ऐसा है कि यह काययोग सर्वजीवों को होता है। अतः सर्वजीव दण्डक में काययोग को विचार करने की यह बात कही गई है। इस कारण इन दोनों योगों में से जिस २ जीव को जो २ योग होना है उसी जीव को उस उस ___ योग को लेकर उस सम्बन्ध में विचार करना चाहिये । यह विचार कहां तक के जीवों में करना है-इस विषय को प्रकट करने के लिये 'जाव वेमाणियाणं' ऐसा पद् कहा गया है-अर्थात् कार्ययोग को लेकर विचार वैमानिक देवों तक करना चाहिये 'सेवं भंते सेवं भंते !त्ति' हे भदन्त ! आपने जो कहा है यह इसी प्रकार है अर्थात् सर्वथा सत्य ही है क्योंकि आपके वाक्य सर्व रूपसे प्रमाणिक है। इस प्रकार प्रेम समय : "नवरं सत्यजिवाणं जाव वेमाणिए" क्यनयोगनी अपेक्षाथी આ કાયવેગના વિચારમાં જે કઈ ફરક હેાય તે તે એજ છે કે આ કાયયોગ સર્વ ને હોય છે. જેથી સર્વ જીવ દંડકમાં કાગને વિચાર કરવાની આ વાત કહી છે. મ ગ અને વચનગ સર્વ ને સહજ હેતે નથી તે કારણે આ બંને માંથી જે જે જીવને જે જે ચોગ હોય છે. તેજ જીવને તે તે રોગને લઈને તેના સંબંધમાં વિચાર કરે જોઈએ આ વિચાર ક્યાં સુધી જીવોના વિષયમાં કરે જોઈએ એ વિષય બતાવવા માટે "जाव वैमाणियाण" मे ५४४घु-मर्थात् ४ाययोग / वैमानि है। सुधाता । भाट विया२ ४२व न . “सेवं भंते ! सेवं भंते त्ति" ભગવદ્ ! આપે જે કહ્યું છે તે એજ રીતે છે-અર્થાત્ સર્વથા સાચું જ છે. કેમકે
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy