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________________ ____५६३ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ ७०१ सू०१ प्रथमाप्रथमत्वे लेश्याद्वारम् ___ अथ पञ्चमं लेश्याद्वारमाह-'सलेस्से गंभंते !' इत्यादि । 'सस्से णभंते। पुच्छा' सलेश्यः खलु भदन्त ! पृच्छा हे भदन्त ! सलेश्यो जीव सलेश्यमावेन किं प्रथमः अप्रथमो वेति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'जहा आहारए' यथा आहारका आहारसूत्रवदिहापि व्याख्यानं ज्ञातव्यम् तथाहि-हे गौतम ! सलेश्यो जीवः सलेश्यभावेन न प्रथमः किन्तु अपथमः एव अनादौ अस्मिन् संसारे छेश्याभावस्य जीवेन अनन्तशो लब्धत्वात् अत: सलेश्यो जीवो न प्रथमो भवति, अपितु अप्रथम एवेतिभावः । एवं पुहुत्तेण वि एवं पृथक्त्वेनापि यथा एकवचनमाश्रित्य सलेश्य जीवस्य सलेश्यभावेन प्रथमत्वं न किन्तु अपथमत्वमेव, तथा बहुवचनमाश्रित्यापि जीवानां संलेश्यमावेन न प्रथमत्वम् अपितु अप्रथमत्वमेवेतिभाव: __पांचवें इस लेश्याद्वार में गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है-'सले. स्सेणं भते! पुच्छा' हे भदन्त ! लेश्या सहित जीव सलेश्यभाव की अपेक्षा से क्या प्रथम है या अप्रथम है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा! जहा आहारए' जैसा आहार सूत्र का व्याख्यान किया गया है-वैसा ही व्याख्यान यहां पर भी जानना चाहिये-अर्थात् सलेश्य जीव सलेश्य भावसे प्रथम नहीं है किन्तु अप्रथम ही है। कारण कि जीवने इस अनादि संसार में लेश्यायुक्त भाव को अनन्तवार प्राप्त किया है। इसलिये सलेश्यजीव प्रथम नहीं है अपितु अप्रथम ही है। 'एवं पुहु. तेणवि' जिस प्रकार एकवचन को आश्रित करके सलेश्यजीव के सलेश्य भाव की अपेक्षा से अप्रथमता कही गई है, उसी प्रकार से बहुवचन को आश्रित करके भी जीवों के सलेश्यभाव की अपेक्षा से अप्रथमता पायभु श्याद्वारપાંચમાં આ વેશ્યા દ્વારમાં ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછયું છે --"सलेस्से णं भते ! पुच्छा" उ लगवन् श्यापारी 4 सश्या माया शुप्रथम छेमप्रथम छ ? माना तरभां प्रभुमे यु, "गोयमा। जहा आहारए" माहा२४ सूत्रना व्याभ्यानमा २ प्रमाणे वामां मा०५ છે. એ જ પ્રમાણેનું વ્યાખ્યાન અહિયાં પણ સમજવું. અર્થાત્ સલેશ્ય જીવ સલેશ્ય ભાવથી પ્રથમ નથી પરંતુ અપ્રથમ જ છે. કારણ કે જીવે આ અનાદિ સંસારમાં વૈશ્યાવાળા ભાવને અનન્તવાર પ્રાપ્ત કરેલ છે. તેથી सवेश्य प्रथम नया पy मप्रथम १ छ "एवं पुहुत्तेण वि" એકવચનને લઈને જે રીતે સલેશ્ય જીવના સલેશ્યભાવની અપેક્ષાથી અપ્રથમપણ કહ્યું છે એજ રીતે બહુવચનને આશ્રય કરીને પણ જીવના સલેશ્યા ભાવની અપેક્ષાએ અપ્રથમપણું જ છે, પ્રથમપણું નથી. તેમ
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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