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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श०१७ ३०११ सू०१ रत्नप्रभादिषु वायुकायिकोत्पत्तिनि० ५१९ व्यम् । 'एव जहा सोहम्मे कप्पे वाउकाइओ सत्तसु वि पुढवीसु उवयाइओ' एवं यथा सौधर्मे कल्पे सौधर्मसम्बन्धिनो वायु कायिकानाम् सप्तस्वपि पृथिवीषु उपपातः 'एवं जाव ईसिप्पमाराए वाउकाइओ अहे सत्तमाए जाब उपवाएयध्यो' एवं यावत् ईषत् माग्मारायाः वायुकायिकानाम् अधःसप्तम्यां यावत् उपपातो वक्तव्याः यथा सौधर्मकल्पसम्बन्धिवायुकायिकजीवानां सप्तस्वपि नारकपृथिवीषु उपपातः कथितस्तथैव यावत् ईषत् प्रारभाराथिवीसम्बन्धिनां वायुकायिकजीवावि पुढवीसु उववाइनो एवं जीव ईलिप भाराए वाउकाइओ अहे. सत्तमाए जाव उचत्राएपच्चो' हे गौतम ! हल विषय में जैसा पहिले कथन किया जा चुका है वैसा ही जानना चाहिये-इस प्रकार से जैसा यह कथन सौधर्मदेवलोक गत वायुशायिक जीव की रत्नप्रभा पृथिवी के घनवात आदि में वायुकाधिकरूप की उत्पत्ति होने के विषय में किया गया है-इसी प्रकार का शर्करा आदि ६ पृथिवियों के धनवात आदि को में वायुकायिक रूप से उत्पन्न होने के सम्बन्ध में कथन करना चाहिये । तथा इसी प्रकार का कथन यावत् ईषत्मोग्भारा पृथिवीत वायुकायिक जीव के भी यावत् सप्तमी पृथ्वी तक उत्पाद होने के सम्बन्ध में कर लेना चाहिये । प्रभु के इस Pाममा प्रभु ४४ छ है 'सेस तं चेव-एवं जहा सोहम्मे कप्पे वाउकाइओ सत्तषु पुढचीसुउवबाइओ एव जाव ईसिपउभाराए वाउकाइओ अहे सत्तमाए जाव उववाएयत्वों' 3 गौतम ! मा विषयमा पडदा ४थन ४२वामा मायुछे, તે પ્રમાણે જ સઘળું કથન સમજવું. અને એ જ રીતે સૌધર્મ દેવલોકમાં રહેલા વાયુકાયિક જીવના રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ઘનવાત વિગેરેમાં વાયુકાયિકપણાથી ઉત્પન્ન થવાના વિષયમાં જે પ્રમાણે કથન કર્યું છે, એ જ રીતનું કથન શપ્રભાપુથી વિગેરે છ પૃથ્વીના ઘનવાત વિગેરેમાં પણ વાયુકાયિકપણાથી પિન્ન થવાના સંબંધમાં સમજવું. અને આજ રીતનું કથન યાવત્ ઈષપ્રાગભારા પૃથ્વીસ્થિત વાયુકાયિકજીવને પણ યાવત સાતમી પૃથ્વી સુધી ઉત્પન્ન થવાના સંબધમાં કથન સમજવું પ્રભુના આ કથનને સાંભળીને ગૌતમ સ્વામીએ
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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