SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 514
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___भगवतीचे वा समोहगमाणे पुचि उबवज्जेता पच्छा संगउणेज्ना से तेणटेणं जाव उवाज्जेम्जा' इति व्याख्या पूर्ववदेव । 'एवं जाव अच्चुयगेविजविमाणे' एवं यावद अच्युतत्रैवेयकविमाने यथा सौधर्मेशानवक्तव्यता कविता तथैवाच्युनोवेयक विमानपर्यन्तं वक्तव्यता ज्ञातव्या अत्र यावत्पदेन सनत्कुमार ३ माहेन्द्र ४ ब्रह्म लान्तक ६ महाशुक्र ७ सहस्त्रारा ८ ऽऽनत ९माणता १० ऽऽरण ११ देश्लोकानां संग्रहो ज्ञातव्या आलापकं प्रकारश्च स्वयमेव पूर्वपकरणवत् उहनीयः । तथा'अणुत्तरविमाणे ईसिपमाराए य एवं चेव' अनुत्तरविमाने अनुत्तरविमानपश्चके जिजज्जा, सव्वेण वा समोहणमाणे पुब्धि उवदज्जेज्जा, पच्छा संपाउ. णेज्जा, से तेणडेणं जाव उववज्जेज्जा' इसकी व्याख्या पहिले की गई जैसी ही है। 'एवं जाव अच्चुय गेविजविमाणे' इसका भाव ऐसा है कि-जैमी व्याख्या सौधर्म ईशान कल्प में उत्पन्न होने योग्य रत्नप्रभा पृथिवीगत पृथिवीकायिक जीव के उत्पन्न होने के विषय में कही गई है उसी प्रकार से यावत् अच्युतकल्म में उत्पन्न होने योग्य हुए रत्न. प्रभापृथिवीगत पृथिवीकायिक जीव के उत्पन्न होने के विषय में भी जान लेना चाहिये-यहां यावतू शब्द से सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक-महाशुक्र, सहस्रार आनत, प्राणत, आरण इन देवलोको का ग्रहण हुआ है। इनके आलापप्रकार पहिले के जैसे ही अपने भाप बना लेना चाहिये । इसी प्रकार का कथन ? त्रैवेधक विमानों में उत्पत्ति के योग्य हुए रत्नप्रभा पृथिवीगत पृथिवीकायिक जीव के . स्पन्न होने के विषय में जानना चाहिये । 'अणुत्तरविमाणे, ईसिप जवजेजा" मानी व्याच्या पडदा ४२वामा पापी छ, ते प्रमाणे समय वी. "एव जाव अच्चुयगेविज्जविमाणे' २ प्रमाणे सोधमन शान - કપમાં ઉત્પન્ન થવાવાળા રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં રહેલા પૃથ્વીકાયિક જીવના ઉત્પન્ન થવાના વિષયમાં કહેવામાં આવ્યું છે એ જ પ્રમાણે યાવત્ અચુત કપમાં ઉત્પન્ન થવાને ચગ્ય બનેલ રતનપ્રભા પૃથવીમાં રહેલ પૃથ્વી કાયિક જીવમાં વિષયમાં પણ સમજી લેવું. અહિયાં યાવત્ શબ્દથી સનभा२, भाडेन्द्र, प्रह, al-d, माशु, सन २, मानत, प्रारत, मा२५, આ દેવક ગ્રહ થયા છે. તેના આલાપના પ્રકારે પહેલા પ્રમાણે સમજવા આજ રીતનું કથન શૈવેયક વિમાનમાં ઉત્પન્ન થવાને ચોગ્ય બનેલ રપમાં પૃપમાં રહેલ પૃથ્વીકાયિક જીવના ઉત્પન્ન થવાના
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy