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________________ भगवतीसूत्रे ४८५ सातिरेका द्विसागरोपमात्मिकेत्यर्थः 'सेस तंत्र' शेवं तदेव एतदतिरिक्तमन्यत्सर्व शक्रस्य यथा कथितं तत्सर्वमपि अत्रानुमन्धेयमेव कियत्पर्यन्तं वक्तव्यम् तत्राह'जाव ईसाणे देविदे देवरायार' दशमशनके सूर्यामदेवातिदेशेन सूर्याभप्रकरण सर्वं पठितव्यमिति । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति, हे भदन्त ! ईशानेन्द्रविषये यन् देवानुपियेग कथितं तत् सर्व सत्यमेव इत्यादि यावद्विहरति ॥९० १॥ ॥ इति श्री विश्वविख्यात-जगद्वल्लम-मसिद्धवाचक-पश्चदशभाषा कलितललितकलापालापकाविशुद्धगद्यपधनकग्रन्थनिर्मापक, वादिमानमर्दक-श्रीशाहूच्छत्रपति कोल्हापुरराजप्रदत्त'जैनाचार्य' पदभूषित - कोल्हापुरराजगुरुबालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर -पूज्य श्री घासीलालबतिविरचितायां श्री "भगवतीभूत्रस्थ" प्रमेयचन्द्रिकाल्यायां व्याख्यायां सप्तदशशतके पञ्चमोदेशका समाप्तः॥१७-५॥ अधिक कही गई है। 'सेसं तं चेव' इस कथन से अतिरिक्त बाकी का और सब कथन ईशानेन्द्र का शक के कथन के जैसा ही है। इस प्रकार से यह देवेन्द्र देवराज ईशान है । तात्पर्य कहने का ऐसा है कि यहां ईशानेन्द्र की जो वक्तव्यता कही गई है। उस वक्तव्यता से अतिरिक्त और सब वक्तव्यता शक की वक्तव्यता के अनुसार ही है। यह शक सम्बन्धी वक्तव्यता १० वें शतक के छठे उद्देशक में कही जा चुकी है। शक्र की वक्तव्यता में सूर्याभदेव की वक्तव्यता ग्रहण करके कहने की बात कही गई है। अत: यहां पर भी सूर्याभदेव प्रकरण सब कहलेना चाहिये। 'सेव भते !सेवं संते ! त्ति' इस प्रकार से प्रभु द्वारा इस शेपमयी ४ मधिअपामा मावी छ. 'सेस त चेव' पूर्वरित ४थनथा બાકીનું અન્ય સઘળું કથન ઈશાનેન્દ્રનું શર્કના કથન પ્રમાણે જ છે. આ રીતને આ દેવેન્દ્ર દેવરાજ ઈશાન છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એવું છે કે-અહિં ઈશાનેન્દ્રના સંબંધમાં જે વર્ણન કરવામાં આવ્યું છે, તે વર્ણનથી ભિન્ન અન્ય સઘળું વર્ણન શકના વર્ણનની માફક જ છે. અને શક સંબંધનું વર્ણન દશમાં શતકના છઠ્ઠા ઉદેશામાં કહેવાઈ ગયું છે. શકના વર્ણનમાં સૂર્યાદેવનું વર્ણન ગ્રહણ કરવાની વાત કહી છે. જેથી અહિયાં પણ સંપૂર્ણ સૂર્યાભદેવના પ્રકરણનું કથન કરી पा सभ दे. 'सेवं भते! सेव' भते ! त्ति' मा Na मा विषयमा
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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