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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १७ उ०५ सू०१ इशानेन्द्र वक्तव्यता ૪૮૩ वक्तव्यता कथिता सा वक्तव्यता ईशानपकरणेऽपि वाच्या अनेन यत् सूचितं तदित्थम् अवगन्तव्यम्, तथाहि - ' अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं आयाम विक्खंभेणं गुणया लीस च सय सदस्साई वाचनं च सहस्साइं अद्वय अडयाले जोयणसए परिक्खेवेणं' इस्पादिअत्रयोदश योजनशतसहस्राणि सार्द्धद्वादशलक्ष योजनानि (१२५०००० ) आयामविष्कंग एकोनचत्वारिंशत् च शतसहस्राणि द्विपञ्चाशत् सहस्राणि अष्ट च अष्टचत्वारिंशद् योजनशतानि अष्टचत्वारिंशदधिकाष्ट शनयोजनानि (३९५२८४८ ) परिक्षेपेण परिधिना, इत्यादि । कियत्पर्यन्तं दशमशतकीय शक्र वक्तव्य तांवाच्या तत्राह - 'जाव आयरक्खति' यावत् आत्मरक्षका इति तत्र दशशतके पष्ठोद्देश केsपि 'एवं जहा सूरिया' इत्युक्तं तेन सूर्याभप्रकरणमत्र वाच्यम् 'ठिती सातिरेगा दो सागरो माई' स्थितिः सातिरेकानि द्विसागरोपमानि ईशानस्य स्थितिः व्यता यहां पर भी - ईशान प्रकरण में भी कहनी चाहिये। इससे जोसूचित हुआ है वह इस प्रकार से हैं 'अद्धतेरलजोयणसयलहस्साइं आयामविवखंभेणं गुणयालीसं च सघसहस्साई बावन्नं च सहस्साई अड्डम अडयाले जोयणसए परिक्खेवेण' इत्यादि इस ईशानावतंसक महाविमान का आयाम विष्कंभ १२५०००० साढे बारह लाख योजन का है तथा परिक्षेप इसका ३९५२८४८ योजन का है। यह शक्र वक्तव्यता यहां 'जाव आयरक्खे ति' १० वे शतक के छठे उद्देशक के इस पाठ तक की ग्रहण कर कहने की बात कही गई है । सो इससे यह फलित होता है कि यहां 'एवं ज़हा सूरिया' के अनुसार सूर्याभ प्रकरण कह लेना चाहिये। क्योंकि उस १० वे शतक के छठे उद्देशक के अन्त में यह पाठ कहा गया है । 'ठिई सातिरेगा दो सागरोवमाई' ईशानेन्द्र की स्थिति दो सागरोपम से कुछ રણમાં પણ સમજી લેવું. આ કથનથી જે સૂચિત થયું છે તે આ પ્રમાણે છે, 'अद्धतेरस जोयणसय सहस्साई आयाम विक्खभेणं गुणयालीसं च सय सहस्साई बावन्नं च सहस्साई अट्ठय अडयाले जोयणसए परिक्खेवेण ' धत्याहि मां ઈશાનાવત સક મહાવિમાનાના આયામ નિકલ લખાઇ પહેાળાઈ ૧૨૫૦૦:૦ સાડા ખાર લાખ ચેાજનના છે. તેમજ તેના પરિક્ષેપ ઘેરાવા ૩૯૫૨૮૪૮ આંગણુાચાલીસ લાખ ખ'વન હજાર આઠસેા અડતાલીસ ચેાજનનેા છે. આ शर्डवऽतव्यता अडि' ‘जात्र आयरक्खेति' इसभा शतउनी छुट्ठी उद्देशाना या पाठ सुधी खानु उछु छे, तेथी मे इसित थाय छे -महि' 'एव' जहा सूरियाभे' मे वयन प्रमाणे सौंपूर्ण सूर्याभ अ २५ અહિં કહેવુ જોઈએ. કેમકે-તે દશમાં શતકના છઠ્ઠા ઉદ્દેશાના અંતમાં મા પાઠ કહેવામાં मावेस छे. 'ठिई साइरेगाइ दो सागरोवमाइ" शानेन्द्र हेवनी स्थिति मे साग
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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