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________________ भगवतीय एजना योगद्वारा आत्मपदेशानाम् अथवा पुद्गलद्रव्याणां चलनं कंपनम् , तथा च कंपनादिरूपा एजना, सा च द्रव्यादिभेदेन पञ्चपकारा तदेव दर्शयति 'तं जहा' तद्यथा द्रव्यैजना द्रव्याणाम् एजना इति द्रव्यै जना तत्र द्रव्याणां नारकादि जीव. संपृक्तपुद्गलद्रव्याणां शरीराणाम् नारकादिजीवद्रव्याणां या एजना द्रव्येजना शब्देन व्यवाहियते । 'खित्तेयणा' क्षेत्रैजना नारकादि क्षेत्रेषु वर्तमानानां जीवानाम् अथवा जीवसंपृक्तपुद्गलद्रव्याणाम् एजना 'कालेयगा' कालैनना काले-नारकादिकाले वर्तमानानां जौवानाम् अथवा जीवसं पृक्तपुद्गलानां या एजना सा कालैजना 'भवेपणा' भवैजना भवे-नारकादिभवे वर्तमानानां जीवानां जीवसंपृक्त पुद्गलानां वा या एजना सा भवैजना 'भावे पणा' भावैजना भावे-औदयिकादिपुद्गल द्रव्यो का चलना इसका नाम एजना है। इस प्रकार एजना कंपनादिरूप होती है, कंपनादिरूप यह एजना द्रव्यादि के भेद से पांच प्रकार की है 'तं जहा' जैसे (दब्वेयणा) द्रव्यएजना-द्रव्यों की एजनानारकादि जीव संपृक्त पुद्गल द्रव्यों का-शरीरों का अथवा-नारकादि जीव द्रव्यों का कंपन यह द्रव्यैजनाहि खित्तयणा 'क्षेत्रैजना-नरकादिक्षेत्रों में वर्तमान जीवों को अधश जीव संपृक्त पुद्गल द्रव्यों की जो एजना कंपन है वह क्षेत्र एजना है 'कायणा' कालैजना नारकादिकाल में वर्तमान जीवों की अथवा जीच संपृक्त पुल द्रव्यों की जो एजना है वह काल एजना है। 'भवेयणा'-भवैजना-नारकादिभव में वर्तमान जीवों की, अथवा जीव द्रव्य संपृक्त पुद्गलों की जो एजना है यह भवैजना-'भावेयणा' भावैजना औदयिक आदि भावों में वर्तमान जीवों की अथवाપ્રકારની કહી છે. ગદ્વારા આત્મપ્રદેશનું કંપન થવું અથવા પુદ્ગલ દ્રવ્યનું ચાલવું તેનું નામ એજના છે. આ રીતે એજના કંપનાદિરૂપ હોય છે. पनाह३५ मा ना द्रव्याहिना मेथी पाय प्रारनी छे. "जहा" मा प्रभारी छ. 'दव्वेयणा' द्र०य भेना द्रव्यानी सन-२४ विगरे युत પુલ દ્રવ્યના શરીરના અથવા નારકાદિવ દ્રવ્યનું કંપન એ દ્રવ્ય એજના छ. "खित्तयणा" क्षेत्र मेना-नाहित्रोमा २९सा वान मा यी व्यास पुरत द्रव्यानी मना-पन छे ते क्षेत्र मेन छ. "कालेयणा" કાલ એજના નારક વિગેરે કાળમાં રહેલા જીવોની અથવા જીવથી વ્યાસ पुगत द्रव्यानी रे मेराना छे ते ४ सरना छ. "भवेयणा" लवमेना -નારકાદિ ભવમાં વર્તમાન જીવની અથવા જીવદ્રવ્યથી વ્યાપ્ત પુદ્ગલેની २ ना छे त सवना छ, "भावेयणा" मानना मोहाय
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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