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________________ भगवतीसूत्रे क्खंति एवं वक्ष्यमाणपकारेण शरीरजीवात्मचिपये आख्यान्ति कथयन्ति 'जाव परूवे ति' यावत् प्ररूपयन्ति, यावत् पदेन 'मासंति पत्रवें ति' इत्यनयोः संग्रहः किं प्रज्ञापयन्ति ते ? तमाह-एवं खलु' इत्यादि । 'एवं खलु पाणाइकाए मुसा. वाए जाव मिच्छादसणसल्ले वट्टमाणस्स अन्ने जीवे अन्ने जीवागा' एवं खलु पाणातिपाते मृावादे यावत् मिथ्योदर्शनशल्ये वर्तमानस्यान्यो जीवोऽन्यो जीवात्मा तत्र अन्ययूयिकाः अन्यतैर्थिकाः ते च शरीरस्य जीवस्य चात्यन्त भेदमाहुस्ते एवात्र अन्ययूथिकत्वेन ग्रहीतव्याः। माणातिपातादिक्रियाविप येषु वर्तमानस्य देहिनः 'अन्ने जीवे अन्ने जीवाया' जीवति-प्राणान् धारयतीति जीवात्मा विषयक जो भिन्नता की मान्यता है उस विषय की सत्यता के ऊपर पूछा है-वे कहते हैं-'अन्नउत्थिया णं भंते ! 'हे भदन्त अन्य यूथिकों का जो 'एवं आइक्खंति' ऐसा कहना है । 'जाच परवेति' यावत् प्ररूपणा करते हैं-यहां यावत् शब्द से 'भासंति पन्नवेति' इन क्रियापदों का संग्रह हुआ है। 'एवं खलु पाणाइवाए मुसावाए जाब मिच्छा दसणसल्ले वट्टमाणस्ल अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया' कि-प्राणातिपात में मृषावाद में यावत् मिथ्यादर्शनशल्य में वर्तमान प्राणी का जीव भिन्न है और जीवात्मा भिन्न है। यहाँ 'जीवति प्राणान् धारयति इति जीवा' इस व्युत्पत्ति के अनुसार जीव शब्द का अर्थ शरीर लिया गया है। अन्य यूधिक अन्य तैर्थिकजन शरीर और जीव का अत्यन्त भेद मानते हैं। इसलिये उनका ऐसा कहना है कि प्राणातिपान आदि क्रियाविशेषों में वर्तमान देही का जीव शरीर अन्य है और जीव मंबन्धी जीवात्माવિષયમાં અન્ય મતવાદિઓની શું માન્યતા છે. તે વિષયની સત્યતા જાણવા भाट प्रभुने पूछता ४ छ है "अन्नउत्थिया णं भंते !" समपन् । अन्य भतालिया “एवं आइक्खंति" मे ४९ छे "जाव परूवेति" यावत् ५३५९। ४२ छ. गडियां यावत् शपथी "भासति" साष ४रे छे. पन्नति प्रज्ञापना ४२ छ. म जियापहोना सब थय। छे. "एवं खलु पाणाइवाए मुसावाए जाव मिच्छादसणसल्ले वट्टमाण्णस्स अन्ने जीवे, अन्ने जीवाया" શું પ્રાણાતિપાતમાં કે મૃષાવાદમાં યાવત્ મિથ્યાદર્શન શલ્યમાં રહેલ प्राणाना १ मिन्न छ १ मने पात्मा लिन्न छ १ मडिया “जीवति प्राणान् धारयति इति जिवः " ४ व्युत्पत्ति प्रमाणे '0' शहना अर्थ શરીર થાય છે. અન્યમૂથિક-અન્યતીથિક જન શરીર અને જીવને અત્યંત ભેદ માને છે. જેથી તેઓનું એવું કહેવું છે કે પ્રાણાતિપાત વિગેરે ક્રિયા વિશેમાં રહેલા શરીરધારીને જીવ શરીરથી જુદે છે. અને જીવાત્મા
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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