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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१७ उ०२ सू०२ जीवानां बालपण्डितत्वादिनिरूपणम् ३८५ इत्यर्थः । 'वाणमंतरजोइसियवेमाणिश जहा नेरइया' वानव्यन्तरज्योतिष्क वैमानिकाः यथा नैरयिकाः वानव्यन्तरादयो नो धर्म स्थिताः अधर्म स्थिताः न वा धर्माधर्मे स्थिताः इत्यर्थः ॥सू० १॥ पूर्व संयतादय उपवर्णिताः ते च श्रमणादयो व्यपदिश्यन्ते इति श्रमणादीनाश्रित्य अन्ययूथिकमतमुपवर्णयन्नाह-'अन्न उत्थिया णं भंते' इत्यादि । मूलम्-अन्नउत्थिया णं भंते! एवं आइक्खंति जाव परूवति-एवं खलु लमणा पंडिया समणोवालया बालपंडिया जस्तक एगं पाणाए वि दंडे अणिखित्ते से जे एगंतबाले त्ति वत्तव्वं सिया, से कहमेयं भंते! एवं ? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव वत्तव्वं लिया जे ते एव माहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु । अहं पुण गोयमा! एकमाइक्खामि जाच परूवोमि एवं खलु लमणा पंडिया समणोबासगा बालपंडिया जस्त णं एगपाणाए वि दंडे निक्खित्ते से गंनो एगंतबाले त्ति वत्तव्य सिया। जीवाणं भंते! किं वाला पंडिया बालपंडिया? गोयमा! जीवा बाला वि, पंडिया वि वालस्थित हैं, अधर्म में भी स्थित है और धर्माधर्म में भी स्थित हैं। 'वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा रया' वानव्यन्तर, ज्योतिषिक, और वैमानिक इनके सम्बन्ध में धर्म, अधर्म एवं धर्माधर्म में स्थित होने का कथन नैरयिकों के सम्बन्ध में किये गये कथन के जैसा जानना चाहिये-अर्थात् वे वानव्यन्तरादिक धर्म में एवं धर्माधर्म में स्थित नहीं हैं किन्तु अधर्म में स्थित हैं ।। सू० १॥ ५६ स्थित छ. 'वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा रइया' पान०य.तर, તિષિક, અને વૈમાનિકેના સંબન્ધમા ધર્મ, અધર્મ, અને ધમધમમાં સ્થિત રહેવાનું કથન, નરયિકના સંબધુમાં કહ્યા પ્રમાણે સમજવું. અર્થાત્ તે વાનવ્યન્તર વિગેરે ધર્મમાં કે ધર્માધર્મમાસ્થિત હતા નથી પરંતુ તેઓ અધર્મમાં જ સ્થિત હોય છે. એ સૂ૦ ૧ भ० ४९
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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