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________________ ફે૦ भगवती सूत्रे भंते ! हत्थराया' भूतानन्दः खलु भदन्त ! हस्तिराजः भूतानन्दनामकः कुणिक राजस्य प्रधानस्वी 'ओहिंतो अनंतरं उन्नट्टित्ता' कुतोऽनन्तरम् उद्वर्त्य भूणादहस्थिरायचाए०' भूतानन्दहस्तिराजतया उत्पन्नः । इत्यादि भूतानन्दस्याती तानागतभवविषयको गौतमस्य प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' हे गौतम | 'एवं जब उदायी जाब अंत काहि एवं यथैव उदायो यावदन्तं करिष्यति हे गौतम! यथा उदायिहस्तिराजस्य वक्तव्यता तथा भूतानन्दस्यापि वक्तव्या यावदन्तं करिष्यतीति पूर्व भूतानन्दोऽसुरकुमार आसीत् तदनन्तरं तवयुत्वा भूतानन्दहस्तिराजो जातः अत्रतो मृत्वा नरके यास्यति ततो नरकान्निर्गत्य महाविदेहक्षेत्रमासाद्य ज्ञानापाराधनं कृत्वा सेत्स्पति भोरस्ते मोक्ष्यति परिनिर्वा स्यति सर्वदुःखानामन्तं करिष्यति चेति समुदितार्थः ॥सू० १२|| दन्त । कुणिकराजा का दूसरा हस्तिराजभूतानन्द है वह 'कहितो अर्णतरं उब्वन्ति भूयाणंदहस्थिरायसाए०' कहां से च्युत होकर भूतानन्द हस्तिराज की पर्याय से उत्पन्न हुआ है ? इस प्रकार से यह भूतानन्द हस्तिराज की भूतपर्याय विषयक प्रश्न है, इसके उत्तर में प्रभुने कहा 'गोमा ! एवं जहेब उदायी जाव अंत काहि' हे गौतम! जैसा स्पष्टीकरण उदायी हस्तिराज के विषय में किया गया है, वैसा ही स्पष्टीकरण भूतानन्द हस्तराज के विषय में भी जानना चाहिये । यावत् वह समस्त दुःखों का विनाश करेगा इस प्रकार वह भूतानन्त भी पहिले असुरकुमार देव था वहां से च्युत होकर वह अब भूतानन्त हस्तिराज की पर्याय में है इसके बाद वह मरकर के नरक में जावेगा, फिर नरक से निकल कर - महाविदेह क्षेत्र में जन्म धारण कर वहीं से ज्ञानादिक की आराधना " भीले हाथी ने लूतान छे. ते "कओहि तो अनंतरं उच्चट्टित्ता भूयाणंद हत्थिरायत्ताए० " यांथी थवीने भूतान हाथिनी पर्यायथी उत्पन्न थयो छे. तेना उत्तरभां अलु उडे छे है " गोयमा एवं जद्देव उड़ायी जाव अंत काहिह" હૈ ગૌતમ ઉદાયી હાથીરાજના વિષયમાં જેવુ* વર્ણન કર્યું છે. એ પ્રમાણેનુ સઘળુ' વર્ણન ભૂતાનઃ હાથીના વિષયમાં પણ સમજવું, યાવત્ તે સમસ્ત દુઃખાના અંત કરશે. આ રીતે તે ભૂતાનંદ હાથી પણ અસુરકુમાર દેવ હતા. ત્યાંથી તે નીકળીને ભૂતાનંદ હાથિપણાને પામ્યા છે. અને ત્યાંથી કાલ કરી તે નરકમાં જશે. અને પછી તે નરકથી નિકળીને મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં જન્મ લેશે. અને ત્યાંથી જ્ઞાનાદિકની આરાધના કરીને સિદ્ધ થશે, યુદ્ધ થશે. મુક્ત થશે, મૈં પરિનિર્વાંત્ થશે. અને સમસ્ત દુ:ખાના નાશ કરશે. ॥ સૂ ૧ !
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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