SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१७ उ०१ २०१ उदायि-भूतानन्दहस्तिराजवक्तव्यती ३९ उदायी हस्तिराजो गौतम ! पूर्वमसुरकुमार आसीत् तदनन्तरं ततः च्युत्वा रत्न प्रभापृथिव्याः नरकावासे उत्पत्ति प्राप्स्यतीत्यर्थः । 'सेणं भंते । स खलु भदन्त ! तओहितो अणंतरं उघट्टित्ता' ततोऽनन्तरम् उद्वर्त्य-ततो निःसृत्य 'कर्हि गच्छिहिइ कहि उववजिहिई कुत्र गमिष्यति कुत्र उत्पत्स्यते नरकान्निर्गत्य स उदायी जीवः कुत्र गमिष्यति कुत्र चोत्पत्ति प्राप्स्यति इति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा!' इत्यादि । 'गोयमा !' हे गौतम ! 'महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ' महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति 'जाव अंतं काहिह' यावदन्तं करिष्यति अत्र यावत्पदेन 'बुज्झइ मुच्चई परिनिव्वाइ सव्वदुक्खाणं' इत्येतेषां संग्रहो भवतीति तथा च स उदायी हस्तिराजजीवो नरकाभिर्गत्य महाविदेहे क्षेत्रे मोक्षं गमिष्यति 'भूयाणंदें उदायी हस्तिराज की पर्याय से मरकर नरकावास में उत्पन्न होगा। 'से णे भंते ! तभोहितोअणंतरं उघहित्ता कहिं गच्छिहिह कहिं उववजिहिह' अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं किहे भदन्त ! वह उदायीहस्तिराज नारक की पर्याय से च्युत होकर कहां जावेगा? कहां उत्पन्न होवेगा? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा! महाविदेहे वाले सिज्झिहिई' हे गौतम! वह महाविदेह क्षेत्र में सिद्धं होगा' जाव अंत काहिह' यावत् समस्त दुःखों का अन्त करेगा यहां यावत्पद से 'बुज्झा, मुच्चइ, परिनिव्वाइ, सव्वदुक्खाणं इन पदों का अहण हुआ है । तात्पर्य इस कथन का ऐसा है कि हस्तिराज उदायी का जीव नरक से निकलकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा और वहीं से मुक्ति प्राक्त करेगा। ' अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'भूयाणंदे णं भते ! हत्थिराया है સાધારણની અપેક્ષાએ તે ધમધર્મજ મુખ્ય સાધન છે. ઉદાયી હાથીની पर्यायथी भरीने नवसभi Gपन्न थशे. से णं भवे ! अणंतरं उवट्टित्ता कहि, गच्छिहिइ, कहि उववज्जिहिइ !" . सगवन् ! हायी थी नानी' પર્યાયથી નીકળીને કયાં જશે ? અને ક્યાં ઉત્પન્ન થશે. તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ छ है "गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झहिइ" 3 गौतम महाविस क्षेत्रमा सिद्ध थशे. “जाव अंतं काहिइ" यापत सधमा मानो मत ४२२. माडियां यावत् ५४थी "बुझइ, मुच्चइ परिनिव्वाइ सव्वदुखाणं" આ પદેન સંગ્રહ થયો છે. આ કથનનું તાત્પર્ય એવું છે કે હસ્તિરાજ ઉદાયીને જીવ નારકની પર્યાયથી નિકળીને મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં ઉત્પન્ન થશે. અને ત્યાંથી જ મુક્તિ પ્રાપ્ત કરશે. હવે ગૌતમ સ્વામી ભૂતાનંદના હાથિના विषयमा प्रभुने पूछे छे है "भूयाणंदे णं भवे ! 3 भगवन् ! नि ।
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy