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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १६ उ० १ ० ३ लो० पञ्चक्रियावत्त्वनिरूपणम् १५ वा निक्षिपन वा 'इकिरिए' कतिक्रियः सदशकेन ज्वलतं लोहं गृहीत्वा अधिकरण्यां यदा उत्पति निक्षिपति यः पुरुषस्तस्य तदा कतिक्रिया भवन्तीति प्रश्नः भगरानाह - 'गोयमे' त्यादि 'गोयमा' हे गौतम | 'जावं च णं से पुरिसे' यावत् च खलु स पुरुषः अयं अयकोद्वायो जात्र निक्खिव का' अयः अयः कोष्ठात् यावत् निक्षिपति वा अत्र यावत् पदेन - अयोमयेण संडासपण' इत्यारभ्य 'उक्खिवह वा' इत्यन्दपदानां ग्रहणं कर्त्तव्यम् ' तावं च णं से पुरिसे' वाचत् चखलु स पुरुषः 'काइयाए जात्र पाणाइत्रापकिरियाए पंचहि किरियाहि पुढे' कायिका यावत् प्राणतिपातक्रिया पञ्चभिः क्रियामि स्पृष्टः लोहमयदशनाय गृहीशा अधिकरण्यामुत्क्षिपन् निक्षिपन वा पुरुषः कायिकीसारभ्य माणातिपातान्वपंच क्रियाभिः क्रियावान् भवतीत्यर्थः । 'जेसिं पिणं जीवाणं' येषामपि खल जीवानाम् 'सरीरेहिंतो' शरीरेभ्यः 'थयो नित्त' अयो निर्व जलते हुए लोहागार से लोह को निकाल कर 'अहिगरणंसि उक्खिवमाणे वा णिक्खिवमाणे वा कहकिरिए ? ' - एरण ऊपर उसे रखकर उलट पुलट करता हुआ कितनी क्रियाओं द्वारा स्पृष्ट होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते - 'गोमा ! जावं चणं से पुरिसे ' हे गौतम ! जब तक वह पुरुष 'अयं अथकोट्ठाओ जाब निक्खिवह वा' लोहे को अयकोष्ठक से अयोमध संदेशक (संडासी) द्वारा पकड़ कर उसे एरण पर रखकर उलटा सीधा करता रहता है 'तावं च णं से पुरिसें काइयाए जाव पाणाहवाय किरियाए पंचहि किरियाहि पुढे' तब तक वह पुरुष कायिकी क्रिया से लेकर प्राणातिपात तक की पांचों क्रियाओं द्वारा स्पृष्ट होता रहता है 'जेसिं पिणं जीवाणं' जिन जीवों के 'सरीरेहिंतो' शरीरों से 'अयोनिब्बतिए' लोहनिर्मित हुआ है, भांथी सोमंडनी साधुसी वडे पडीने 'अडिगरणंसि उक्खिव्वमाणे वा निक्खिव्यमाणे वा कइ किरिए' २ ३५२ तेने राजी उसटासुसी કરતી વખતે તે પુરૂષ કેટલી ક્રિયાએથી પૃષ્ટ થાય છે ? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ अछे “गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे " हे गौतम! नयां सुधी ते चु३ष " अयं अयकोट्ठाओ जाव निक्खिवइ वा " बोमउने लट्ठीभांथी साधुसी वडे थाडीने तेने मेरयु पर राजीने उसासुसटी उरे छे. “तावं च णं से पुरिसे काइयाए जाव पाणाइवाय किरियाए पंचहि किरिया हिं पुट्टे " त्यारे ते यु३ष डायोडी विगेरे यांचे हियाओ द्वारा स्पृष्ट थाय छे. "जेसि पिणं जीवाणं " ? वोना " सरीरे हितो: " शरीरथी " अयो निव्वत्तिए " सो मन्य होय
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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