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________________ १४ भगवतीस्त्रे अङ्गारकर्षिणी ईपद्वक्राया लोहादिमया यष्टिरित्यर्थः, 'गत्था नियत्तिया'-मस्खा निर्वतिता,-भस्त्रानाम चर्मनिर्मितवायुपूरको लोहकाराणामुपकरणविशेपः 'धमण' इति प्रसिद्धा, तेविणं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढा' तेपि खलु जीवा कायिक्या यावत् पंचमिः क्रियाभिः स्पृष्टाः । अत्र लोहादि पदार्थशरीरजीवानाम् पश्चक्रियावत्वम् अविरतिभावेन ज्ञातव्यम् , यत इमे जीवा अविरतिमंतोऽतः पश्चक्रियामिः स्पृष्टा भवन्तीत्यर्थः । 'पुरिसे णं भंते' पुरुपः खलु भदन्त, अयं अयकोटामो अयोमएणं संडासएणं गहाय' अयः अयाकोप्ठात् अयोमयेन संदंशकेन गृहीत्वा लोइनिर्मितयष्टया ज्वलन् लोहागारात् लोहमादायेत्यर्थः 'अहिकरिणिसि' अधिकरण्याम् 'उविखन्त्रमाणे वा निक्खित्रमाणे वा' उत्क्षिपन् हुई है, 'भत्था निव्वत्तिया' भन्ना-धोंकनी-बनी है, यह धोंकनी चमडे की बनी होती है, इससे लुहार भट्ठी को हवा भरता है। जिससे उसमें अग्नि अधिक चैतन्य हो जाती है 'ते चि णं जीना काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुट्ठा' ये सय जीव कायिक क्रिया से लेकर प्रागातिपान क्रिया से स्पृष्ट होते हैं। ये लोहादिक पदार्थ वे हैं शरीर से जिनके ऐसे जीवों में जो पंचक्रियावन्ता प्रकट की गई है वह उनके अविरति भाव से प्रकट की गई है ऐसा जानना चाहिये । जिस कारण ले ये जीव अविरतिघाले होते हैं इसी कारण से ये पांच कियाओं से स्पृष्ट होते हैं। ___अगौतमप्रभु से ऐसा पूछते हैं-'पुरिसे णं भंते ! अयं अयकोठाओ आयोनएणं लंडालएणं महाय' हे भदन्त ! जो पुरुष लोहे को लोहकोष्ट से अयोग्य संदंशक-संडाली ले पड़ कर-लोहनिर्मित छड-द्वारा (धातुमाना 1) मनी जय " भथा निव्वत्तिया" भवा-धमा सना हाय આ ભસ્મ ચામડાની બનેલી હોય છે અને તેનાથી લુહાર ભઠ્ઠી પેટાવવા હવા भरे छ. रथी तमानी मभि पधारे प्रचलित थाय छे. “वे वि ण जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहि पुढा" मा चायाथी सधने પ્રાણાતિપાત સુધીની પાચે કિયાએથી પૃષ્ટ થાય છે. તે હાદિક પદાર્થ જેના શરીરથી બનેલા હોય એવા જીને પાંચ કિયાવત્તા કહિ છે તેમાં અવિરતિ અપચ્ચકખાણ ભાવથી પ્રગટ કરવામાં આવી છે એમ સમજવું જે કારણથી આ જીવ અવિરતિવાળા થાય છે તેજ કારણથી તે પાચે કિયાએથી પૃષ્ટ થાય છે. व गौतम भाभी प्रभुन से पूछे छे है-" पुरिसे णं भवे । अयं अयकोद्राओ अयोमएणं संहासएणं गहाय" मगबन! रे ५३५- सामने मी
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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