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________________ ૐ૦૮ भगवती सूत्रे तिमिच्छकूटस्य यथा चमरस्य द्वीतीय शतकाष्टमोदेशके तिगिच्छकूट पर्वतस्य प्रमाणमुक्तम् तथैव बलिसम्बन्धिरुव केन्द्रपर्वतस्य प्रमाणं ज्ञातव्यम् तथा च- 'चचारि तीसे जोयणसए कोसं चन्त्रिहे गं' चत्वारि त्रिंशत्यो जनशतानि कोशश्च उद्वेधेन त्रिंशदधिकानि चतुःशतानि, तदुपरि एकः क्रोशच उद्वेधेन गम्भीरत्वेन भूम्यन्तर्गतत्वेनेत्यर्थः ' गोत्थुमस्स आवासपव्त्रयस्स पमाणेण णेयव्वं' गोस्तुभस्यावासपर्वतस्य प्रमाणेन ज्ञातव्यम् । गोस्तुभाभिधावास पर्वत परिमाणतुल्यमस्यापि प्रमाणं ज्ञातव्यम् 'नवरं उवरिल्लं पमाणं मज्झे भाणियव्वं' नवरम् उपरितनं प्रमाणं मध्ये भणितव्यम् विशेषः केवलमयम् यत् गोस्तुभपर्वतस्य यदुपरितनं प्रमाणं तत् मध्ये कथितव्यम् इति अयोत्पातपर्वतस्य परिमाणं प्रदर्शयति - 'मूले दसवाची से जोयणसए विक्खंभेणं सज्झे चत्तारि चडवी से जोयणसए विक्रमेणं, उपरि सचतेवी से जोयणसर विक्खमेणं, मुले तिष्णि जोपण " च्छकूडस्स' इसका यह प्रमाण तिमिच्छकूट नामके उत्पातपर्वत के अनुरूप कहा गया है । यह तिगिच्छकूट नामका उत्पात पर्वत चमर का है। तथा च ' चत्तारि तीसे जोयणसए कोस चउच्चेहेणं' यह रुचकेन्द्र नामका पर्वत उद्वेध की अपेक्षा ४१० योजन और एक कोश का है। द्वे का तात्पर्य है कि यह पर्वत भूमि के भीतर इतना गहरा गया हुआ है । 'गोत्युभस्स आवासपव्वयस्त पमाणेण णेपव्वं 'इस पर्वत का यह माप गोस्तुभनामक आवासपर्वत के माप जैसा है । 'नवरं उवरिल्लं पमाणं मज्झे भाणिपव्वं ' विशेषता केवल यहां ऐसी है कि गोस्तुभ के ऊपरी भाग का जो प्रमाण है वह प्रमाण यहां बीच के भाग का जानना चाहिये। इसी बात को स्पष्ट करने के लिये 'मूले दसघावीसे जोषणसए विक्खंभं मज्झे चत्तारि चडवीसे पर्वतनी प्रेम छे. तेभ४ " चत्तारि तीसे जोयणसए को संच उव्वेहेणं" मा રુચકેન્દ્ર નામના પર્યંત ઉધની અપેક્ષાએ ૪૩૦' યાજન અને એક કાશ છે. ઉદ્વેષનું તાત્પ એ છે કે આ પવ ત જમીનની અંદર એટલે ઊંડા छे. "गोत्थुमस्त्र आवासपवयस्व पमाणेण णेयव्वं" मा रुथडेंन्द्र पर्वतनुं भाष गोस्तुभनाभना भावासतना भाय प्रमाणे छे, "नवरं उवरिल्लं पमाणं मज्झे भाणियव्वं" विशेषता ठेवण अड्डियां शो ४ छे टु गोस्तुलना ઉપરના ભાગનુ જે પ્રમાણ છે, તે પ્રમાણુ અહિયાં વચલા ભાગનું सभन्नवानु छे मेन वातने स्पष्ट उखाने भाटे “मूले दसघावीसे जोयणसए विक्खभं मज्झे चत्तारि चठवीसे जोगणसए विक्खंभेणं उवरि सत्ततेवीसे N
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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