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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १६ उ० ८ सू० १ लोकस्वरूनिरूपणम् ૧૯૧ जीव एसा अजीवा अजीवदेसा अजीव परसा' इति प्रश्नः हे भदन्त ! लोकस्य अस्तने चरमान्ते किं जीवाः सन्ति जीवदेशाः सन्ति जीव प्रदेशाः सन्ति अथवा अजीवाः सन्ति अजीवदेशा सन्ति अजीवप्रदेशा वा सन्तीत्येवं रूपेण प्रश्नः कार्यः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा !' हे गौतम ! 'नो जीवा जीवमा वि जीवसा वि जाव अजीवपएसा वि' नो जीवाः जीवदेशा अपि जीवदेशा अपि यावत् अजीव प्रदेशा अपि अत्र यावत् पदेन 'अजीवा त्रि भजीव देसा वि' इत्यनयोः सङ्ग्रदो भवतीति हे गौतम ! लोकस्याधस्तनश्चरमान्ते जीवा न भवन्ति किन्तु जीवदेशा भवन्ति जीवम देशाश्चापि भवन्ति अजीवा भवन्ति अजीवदेशा अजीव देशाश्च भवन्तीत्यर्थः । 'जे जीवदेसा ते नियमं एनिंदिया' ये जीवदेशाः ते नियमात् एकेन्द्रियदेशाः 'अहना एगिंदिय देसाय बेईदियरस य देसे' अथवा एकेद्विपदेशाथ द्वीन्द्रियस्य देशः १, 'अहवा एगिदिय देसाय इंदियाणयदेसा' अथवा एकेन्द्रिय देशाश्च द्वीन्द्रियाणां च देशाः है वहां क्या जीव है ? जीव देश है ? जीव प्रदेश हैं ? अथवा अजीव हैं ? अजीव देश हैं ? या अजीव प्रदेश हैं ? ऐसा यह प्रश्न हैं - इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-गोयमा ! नो जीवा जीवदेसा वि, जीवपएसा विजाब अजीव एसा वि' हे गौतम | लोक के अधस्तन चरमान्त में जीव तो नहीं हैं किन्तु जीव देश हैं, जीव प्रदेश हैं, यावत् अजीव प्रदेश भी हैं यहां यावत् शब्द से 'अजीवा त्रि अजीव देसा वि' इन पदों का संग्रह हुआ है । 'जे जीवदेपा ने नियम एगिंदियदेसा' जो वहां जीव देश हैं वे नियम से एकेन्द्रिय देश हैं ' अहवा एगिंदिय देसा य वेह दियरस देखे' अथवा - वे एकेन्द्रिय के देश हैं, या वे इन्द्रिय શું જીવ છે ? કે જીવ દેશ છે ? કે જીવ પ્રદેશ છે? અથવા અજીવ કે અજીવ દેશ छे ? व अहेश छे ? तेना उत्तरमां प्रभु छे 'गोयमा नो जीवा जीव हे गोभ तोड़ना नीचेना थर છે તેમ જીવ પ્રદેશ પણ છે. યાવત્ देसावि, जीव पसावि जाव अजीवपएसा वि' માન્તમાં જીવ હાતા નથી. પરંતુ જીવ દેશ अलव अहेश चलु छे. अडिया यावत् शम्हथी ये होना संग्रह थयो छे, 'जे जीवदेसा ते नियमं 'अजीवा वि अजीवदेसा वि' एगिदिय देसा' त्यां वदेश छे ते नियमथी मेडेन्द्रिय हेश छे. 'अहवा एगिदिय देसाय वेइंदियस्स देखे' અથવા તે એકેન્દ્રિયના દેશ છે. અથવા તે એઈન્દ્રિયવાળા જીવાના તે એક हेश छे, "अहवा एर्गिदियदेसाय बेइंदियाण य देसा" अथवा केन्द्रियना देशी
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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