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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १६ उ० १ सू० २ अधिकरणीनामकोद्देशक निरूपणम् ९ कालं संचि' अग्निकायः कियन्तं कालं संतिष्ठते, अङ्गारान् करोति इति अङ्गारकारिका अग्निशकटिका तस्याम् अङ्गारशकटिकायां 'सगडी' इति लोकप्रसिद्धायां समुत्पद्यमानोऽग्निकायः कियत्कालपर्यन्तं तत्र संतिष्ठते इति प्रश्नः । भगवान, ह'गोमा' हे गौतम! 'जहणेणं अंत्रो मुहतं उक्कोसेणं तिनि राई दिया " जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् उत्कृष्टतः त्रीणि रात्रि दिवानि । अयमग्निशकटिकायां न hamaara ra तिष्ठति किन्तु 'अन्ने वि तत्थ aisare ahar' अन्योपि तत्र वायुकायो व्युत्क्रामति उत्पद्यते, संभवतीत्यर्थः यत्राग्निकायस्तत्रावश्यमेव arrat vedत्याह- 'न विणे' त्यादि, 'न विणा वाउकाएणं अगणिकाए सिगड़ी में "हे भदन्त ! अग्निकाय कितने काल तक रहता है ?" अङ्गारान् करोति इति अङ्गारकारिका" इस व्युत्पत्ति के अनुसार अङ्गारकारिका का तात्पर्य है अग्नि जिसमें जलाई जाती है ऐसी सिगडी' सिगडी में जब अग्नि जलाई जाती है तो वह जलाई गई अग्निअग्निकाय कितने समय तक सचेतन-प्रज्वलित - बनी रह सकती है ? सो इसके उत्तर में प्रभु ने कहा- 'गोयमा ! हे गौतम | 'जहन्नेणं अंतो मुहतं उक्कोसेणं तिनि राइदियाई' समुत्पद्यमान अग्निकाय जघन्य सेतो अन्तर्मुहूर्त तक सचेतन बना रहता है, और उत्कृष्ट से तीन दिनरात तक सचेतन बना रहता है । इसके बाद वह अचेतन हो जाता है । इस अग्निशकटिका में सिगडी में केवल अग्निकाय यही नहीं रहता है किन्तु उसके साथ 'अन्ने वि तत्थ वाडकाए वक्कमइ' और भी वायुका रहता है - उत्पन्न होता है। क्योंकि जहाँ अग्निकाय है वहां पर अवश्य ही वायुकाय होता है 'न विणा वाउकाएणं अगणिकाए 66 હું ભગવન્ ! અ`ગારીકામાં (સગડી) અગ્નિકાય કેટલા સમય સુધી રહે છે? अङ्गरान् करोति इतिअङ्गर कारिका" मे प्रभा व्युत्पत्ति थाय छे उडवाना હેતુ એ છે કે અગ્નિ જેમાં સળગાવવમાં આવે છે, તેવી સગડીમાં સળગાવેલે અગ્નિ કેટલા સમય સુધી, સચેતન-સળગેલા રહે છે ? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુએ * - " गोयमा !" हे गौतम! " जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि राइंदियाई " उत्पन्न थते। अभिप्राय धन्यथी अन्तर्मुहूर्त सुधी सचेतन રહે છે અને ઉત્કૃષ્ટથી ત્રણ દિવસ રાત સુધી રહે છે. તે પછી તે અચેતન થઈ જાય છે, અર્થાત તે સગડીમાં ફક્ત અગ્નિકાય જ રહેતા નથી. પરન્તુ तेनी साथै " अन्ने वि तत्थ वा उकाए वक्कमइ ” તેની સાથે ખીજા પણ વાયુકાચા રહે છે ઉત્પન્ન થાય છે. કેમકે જ્યાં અગ્નિકાય હાય ત્યાં વાયુકાય भ० २
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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