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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१६ उ०६ सू०२ स्वप्नस्य याथार्थ्यायाथार्थ्यनि० २११ विषये पूर्वपदर्शितरूपेण प्रश्नः कर्तव्यः तत्र पुच्छेति पदेन 'भंते ! वासुदेवंसि गम्भं वक्कममाणसि कइ महासुविणे पासित्ता गं पडिवुझंति' एतदन्तस्य सम्पूर्णस्यापि प्रश्नवाक्यस्य ग्रहणं भवतीति । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा !" है गौतम ! 'वासुदेवमायरो जाव वंक्रममाणंसि' वासुदेवमातरो यावद् न्युत्क्रामति, अत्र यावत्पदेन 'वासुदेवंसि गम्भ' इत्यनयोहणं भवति 'एएसिं चोइसण्हं महामुविणाणं' एतेषां चतुर्दशानां महास्वप्नानाम् 'अन्नयरे सत्त महामुविणे' अन्यतरान् समहास्वप्नान् 'पासित्ता णं पडिबुज्झति' दृष्ट्वा खलु मतिबुद्धयन्ते 'बलदेवमायरो पुच्छा' बलदेवमातरः पृच्छा अनापि पुच्छत्यनेन 'णं भंते ! वल देवंसि गम्भं वक्कममाणासि कइ महामुविणे पासित्ता णं पडिवुज्झति' इत्यन्तस्य संपूर्णस्य प्रश्नवाक्यस्य संग्रहो भवतीति । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । को उनके गर्भ में आ जाने पर देखती है ? और देखकर प्रतिबुद्ध होती है ? यहां 'पुच्छा' पद से 'भते! वासुदेवंसि गम्भवक्कममाणंसि कइ महासुविणे पासित्ता णं पडिवुज्झति' इस पाठ का ग्रहण हुआ है। इस प्रश्न वाक्य के उत्तर में प्रभु कहते हैं। 'वासुदेवमायरो जाव वक्कममाणसि' हे गौतम ! वासुदेवों की माताएँ जब वासुदेव उनके गर्भ में आ जाते हैं तब 'एएसिं चोदसण्हं.' इन १४ महास्थानों में से कोई सात महास्वप्नों को देखकर प्रतिवुद्ध होती हैं । 'बलदेवमायरो पुच्छा' 'यहाँ पुच्छा' शब्द से ऐसा आलाप बनाकर घोलना चाहिये-'यल देवमायरोण मंते! बलदेवसि गम्भवक्कममाणति का महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झति हे भदन्त ! बलदेवकी माता जब बलदेव जनके गर्भ में आ जाते हैं-तब कितने महास्वमों को देखकर प्रतियुद्ध છેએના ગર્ભમાં આવે છે. ત્યારે કેટલા મહાસ્વપ્ન જોઈને જાગી જાય છે. माहिया 'पुरछ।' से ५४थी 'भंते वासुदेवंसि गम्भ वक्कममाणंसि कइ महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्यति' मा ४२ सय थये। छे. या प्रश्नवायना उत्तरमा प्रभु हे छ'वासुदेवमायरो जाव वक्कममाणंसी है गौतम વાસુદેવેની માતાએ જ્યારે વાસુદેવ તેઓના ગર્ભમાં આવે છે. ત્યારે 'एएसि' चोइसणं' या यौह भला कनीना सात महापानान नधन प्रतिमुद्ध थाय छे. a amil जय छ 'बलदेवमायरो पुच्छा' माहियां 'पुस्छ।' से पहथी नीचे प्रमाणेन। माता सम सेवा. 'चल देवमायरोण भंते ! पलदेवंसि गम्भ वक्कममाणसि कइ महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झति' सावन मावनी माता न्यारे सण तमना गम मां આવી છે ત્યારે કેટલે મહાવને જોઈને પ્રતિબંધિત થાય છે,
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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