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________________ प्रमेय चन्द्रिका टीका श० १६ उ०६ सू०२ स्वप्नस्य याथार्थ्यायाथार्थ्यनि० १०९ सति 'कइ महामुविणे' कति महास्वमान्-महाफलमूचकत्रिंशतस्वप्नमध्यात् कतमान् महास्वमान् 'पासित्ता णं पडिबुझंति' दृष्ट्वा खलु प्रतिबुद्धयन्ते ? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा !' हे गौतम ! 'तित्थगरमायरो णं' तीर्थकरमातरः खलु 'तित्थगरंसि गम्भं रक्कममाणसि' तीर्थकरे गर्भ व्युत्क्रामति-स्वजनन्या उदरे तीर्थकरे समागते सतीत्यर्थः 'एएसिं तीसाए महामुदिणाणं' एतेषां त्रिंशन्महास्वमानां मध्ये 'इमे चोदस महामुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झति' इमान् वक्ष्यमाणान् चतुर्दशमहास्वमान् दृष्ट्वा खलु प्रतिबुद्धयन्ते । महाफलसूचकान् चतुदशमहास्वमानेव परिगणयन्नाह-'तं जहा' इत्यादि । 'तं जहा' तधथा 'गय-उसम -सीह अभिसेय जाब सिहिं च' गनषभसिंहाभिषेक० यावत् शिखिनं च अत्र यावत्पदेन पुष्पमालायुगल-वन्द्रसूर्य -ध्वज-कुम्भ-पझ-सरोवर-क्षीर-समुद्रविमान माताएँ जब वे उनके गर्भ में आ जाते हैं । 'कह महासुविणे पासित्ता' तब ३० महास्वपनों में से कितने महा स्वप्नों को देखकर 'णं पडिवुज्झलि' जगती हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गोतम ! 'नित्थगरमायरोणं तिस्थगरंसिंगभं वक्कममाणसि तीर्थकर की माताएँ जब तीर्थकर उनके गर्भ में अवतरित हो जाते हैं उस समय में 'एएसिं तीसाए महासुविणाणं इमे चोद्दल महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झंति' इन ३० महास्वप्नों में से इन चौदह महास्वप्नों को देखकर प्रतिवुद्ध हो जाती हैं-जग जाती हैं-१४ महास्वप्न इल प्रकार से हैं-'गय-उलभ-सीह-अभिसेय जाव सिंहिं च' गज, वृषभ, सिंह, अभिषेक, पावत्पद ग्राह्य-पुष्पमालायुगल, चन्द्र, सूर्य, ध्वज, कुम्भ, पद्मसरोवर, क्षीर समुद्र, विमान और रत्नराशि 'कइ महासुविणं पासित्ता' श्रीस महा माना । २१. म. 'णं पडिवुज्झति' तमानी माताम्मे on नय छ १ तेन। उत्तरमा प्रभु हे छ है 'गोयमा' हे गौतम । 'तित्थगरमायरो णं तित्यगरंसि गम वक्कममाणंसि' तिथ"४२नी माता न्यारे तिरे। तया गमभा मा छे त्यारे 'एएसि तीसाए महासुविणाणं इमे चोदसमहासुविणे पासित्ता णं एडिबुज्झति' मा ત્રીસ પ્રકારના મહાસ્વપ્નો પૈકી ચૌદ મહા સ્વપ્નને જોઈને પ્રતિબુદ્ધ થાય छे. अर्थात् atell anय छ त यो भडा२५८२ मा प्रमाणे छे. 'गय-उसभ सीह अभिसेय जाव लिहिव' (१) , (हाथी) (२) वृषभ (TE) (3) सिड (४) भनि माया यावत् ५४थी (५) ४०५माता युगल (1) 'द्र (७) सूर्यः (८) Jan (6) ४ (१०) ५सश१२ (मजीवाणुता ) (११) भ०२७
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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