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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१६ उ०५ सू०४ गङ्गदत्तदेवस्य पूर्वभवविषयकप्र० १८१ 'जाव जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठावेई' यावत् ज्येष्ठपुत्र कुटुम्बे स्थापयति 'तं मित्तणाति जाव जेहपुत्तं च आपुच्छइ' तं मित्र ज्ञाति यावत् निजकस्वजनसम्बन्धिपरिजनान् ज्येष्ठपुत्रं च आपृच्छति 'आपुच्छित्ता पुरिससहस्सवाहिणि सीयं दुरूहइ' आपृ. च्छय पुरुषसहस्रवाहिनीं शिविकां पुरुषसहस्रेण नीयमानां 'पालकी' इति प्रसिद्धाम् दरोहति-अधिरोहति 'दुरूहित्ता' दुरुह्य 'मित्तणातिनियग जाव परिजणेणं जेटपुत्तेण य' मित्रज्ञातिनिजकस्वजनसम्बन्धिपरिजनेन ज्येष्ठपुत्रेण च 'समणुगम्ममाणमग्गे' समनुगम्यमानमार्गः, यस्य पृष्ठतः स्वजनादयः चलन्तीत्यर्थः सन्धितओ पच्छाहाए जहा पूरणे' आमंत्रित करके फिर बाद में उसने स्नान किया और पूरण श्रेष्ठी के जैसा सब कर्तव्यकार्य किये-यहां पूरण श्रेष्ठी का आख्यान कहलेना चाहिये, 'जाच जेलुपुत्तं कुडुवे ठावेह' यावत् उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब में स्थापित कर दिया। और फिर त मित्तणाइ जाव जेटुं पुत्तं च आपुच्छह' अपने मित्रजनों से ज्ञातिजनों से, यावत् ज्येष्ठ पुत्र से पूछा-यहां यावत्पद से निजक-स्वजन-संबधि-परिजनान् इस पदों का संग्रह हुआ है। 'आपुच्छिन्ता पुरिससहस्सवाहणिं स्लीय दुरूहह' स्वमित्रादिजनों से पूछकर फिर वह पुरुषसहस्र से उठाई जा सके ऐसी पालखी पर सवार हुआ। 'दुलहिता' सवार होकर 'मित्तणाइणियग जाव परिजणेणं जेट्टपुत्तेण य समणुगम्ममाणमग्गे वह हस्तिनापुरनगर के ठीक बीचोंबीच के मार्ग से होकर निकला-इस समय इसके साथ इसके मित्रजन, ज्ञातिजन, निजकजन स्वजन सम्बन्धिजन परिजन और जेष्ठ पुत्र ये सब - સર્વને આમંત્રણ આપીને પછી સ્નાન કર્યું અને પૂરણ શેઠની માફક તેણે સઘળું કર્તવ્ય કાર્ય કર્યું અહિંયા પૂરણ શેઠનું સમગ્ર વૃત્તાંત સમજી લેવું "जाव जे पुत्तं कुटुंबे ठावे" यावत् तोपताना मोटा पुत्रन पाताना स्थान ५२ उत्तराधिकारी तरी स्थापित यो त पछी "तं मित्तणाइ जाच जेद्रपुत्तं च आपुच्छह" योताना मित्रानाने, ज्ञातिभनान यात मोटा पुत्रने पूछीन गडिया यात ५४थी “निजकस्तजनसंबंधिपरिजनान् " से होना सह थयो छ. २१४न, समीशन विगेरेने " आपुच्छित्ता पुरिससहस्स वाहिणि सीयं दुरुहा" पाताना भित्र विगैरेने पूछीन १००० मा साथी पहन री शय ती पानीमा त मेठी "दुरूहिता" मेसीन " मित्तणाइ, नियग जाव परिजणेण जेट्ठ पुत्तेण य समणुगम्ममाणमग्गे" हस्तिनापुर નગરના વચ્ચેવચના રાજમાર્ગથી નિકળે તે સમયે તેની સાથે તેના મિત્રો, જ્ઞાતિજને, નિજકજને, સ્વજને, સંબંધીજને અને પરિજને અને તેને २४ पुत्र विगैरे सपना तनी पायासत ता. “सबिड्ढीए जाव णादित. रवेणं" a पाताना भू वैशवना साथे भने पाताना तुभुस पनिनी साथै
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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