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________________ १७६ भगवतीले गच्छति 'तेणेव उवागच्छित्ता' तत्रैव उपागत्य 'मुणिमुवयं अरह' मुनिसुव्रतम् , अर्हन्तम् विखुत्तो' त्रिः कृत्वः त्रिवारम् 'आयाहिण० जाच तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जु गसई' आदक्षिण यावत् त्रिविधया पर्युपासनया पर्युपास्ते आदक्षिण प्रदक्षिणं करोति आदक्षिगप्रदिक्षणं कृत्रा अत्र यावत्पदेन 'वंदह नमसइ वंदिता नमंसित्ता' एतेषां ग्रहणं भवति, त्रिविधया पर्युपाप्तममा पर्युपास्ते-पर्युपासना. यात्रैविध्य कायिकवाचिकमानसिकभेदात् भवति तथा च कायिक्या वाचिक्या मानसिक्या पर्युपासनया पर्युपास्ते भगवन्तं मुनिसुबां गङ्गदत्त इति, 'तए णं मुणिसुब्बए अरहा' ततः खलु तदनन्तरं किल युनिसुव्रतोऽईन् 'गंगदत्तस्स गाहावइस्स' गङ्गदत्तस्य गायापनेः 'तीसे य महति जाव परिसा पडिगया' तस्यै च महाति चलकर वह जहां वह सहनामवन नामका उद्यान था और उसमे भी जहां मुनिसुव्रत अर्हन्त विराजमान थे वहां पहुँचा 'तेणेव उवागच्छित्ता' वहां पहुंचकर उसने 'मुनिसुव्वयं अरह' मुनिसुव्रत अर्हन्त को 'त्तिक्खुत्तो' तीन बार करके 'आपाहिण. जाव तिविहाए पण्जुवास. णाए पज्जुवासह विधि सहित आदक्षिण प्रदक्षिण किया, फिर यावत्पद से गृहीत 'वंदह नमंसह, वंदित्ता नमंसित्ता,' इन पदों के अनुसार उसने उनको वन्दना की, नमस्कार किया, और विविध पर्युपासना से उनकी उपासना की-मन वचन और काय इन संबन्धी उपासना से तीन प्रकार की कही गई है। 'तए णं मुणिसुधए अरहा' इसके बाद मुनिसुव्रत अर्हन्त ने 'गंगदत्तस्स गाहावहस्स' गंगदत्त गाथापति को मुनिसुव्रत मुनि विरात ता, त्यांत पांच्या "तेणेव उवागच्छित्ता" त्यो पडेयीन “मुनिसुव्वयं अरहं तिक्खुत्तो" भुनिसुव्रत मतने त्रवार " आयाहिण० जाव तिविहाए पज्जुवासणाए, पज्जुवासई" विधि सहित पार म.सिय प्रतिक्षिा पूर्व वहन नभ४।२ र्या भडियो यावत् ५४थी "वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता " ना री नम२७२ र्या पहना नभ२४॥२ शन એ પદોને સંગ્રહ કર્યો છે,) ત્રણ પ્રકારની પર્યાપાસનાથી તેઓની પર્યપાસના કરી મન, વચન અને કાય રૂપ ઉપાસનાથી ઉપાસના કરવી તેને ત્રણ प्रहारनी पासना ४उपाय छे. “तए णं मुणिसुव्वए अरहा" ते पछी मुनि सुनत मन्ते “ गंगदत्तस्स गाहावइस्स" गहत गाथापति “तिसेय महति जाव परिसो पडिगया" a वि परिषहमा धमनी पडेशना
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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