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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०१६ उ०५ सू०३ गङ्गदत्तदेवस्यागमनादिनिरूपणम् १५५ माणा पोग्गला परिणया नो अपरिणया' परिणभन्तः पुद्गलाः परिणताः, तो अप. रिणताः कुतो नापरिणतास्ववाह-'परिणमंतीति पोग्गला परिणया नो अपरिणया' परिणमन्तीति कृत्वा पुद्गलाः परिणता एवं नो अपरिणताः परिणयन्तीति यदुच्यते तत् परिणामस्य सद्भावे एव संभवति, अन्यथा, अन्यत्रापि, अतिप्रसङ्गः समापवेत् परिणामसद्भावे च परिणमन्तीति व्यपदेशे परिणतत्वम् , अवश्यम्भावि यदि कदाचित् परिणामे सत्यपि परिणतत्वं न स्यात् तदा सदा सर्वदा परिणतत्वाभाव एच स्यादिति । 'से हमेयं भंते ! एवं' तत् कथमेतद् भदन्त ! एवम्-हे दृष्टि देव से ऐसा कहा-'परिणममाणा पोग्गला परिणया, नो अपरिणया' जो पुद्गल परिणमनकर रहे होते हैं वे पुद्गल परिणत कहे जा सकते हैं। अपरिणत नहीं कहे जा सकते हैं क्योंकि परिणमंतीति पोग्गला परिणया नो अपरिणया' जो परिणमन हो रहे हैं वें पुदल परिणत कहे गये हैं। अपरिणत नहीं कहे गये हैं । इलका भाक्ष ऐला है कि 'परिणमन्ति' ऐसा जो कहा जाता है वह उनमें परिणाम होने के सद्भाव में ही कहा जाता हैं। ऐसी बात न हो तो जहां परिणमन का सद्भाव नहीं है वहां पर भी इस प्रकार के कहने का प्रसङ्ग प्राप्त होगा और जब परिणाम का यहां सद्भाव है तो इस स्थिति में परिणतता भी अवश्यंभावी हैं ऐसा मानना अनिवार्य हो जाता है क्योंकि परिणाम के होने पर भी यदि वहां परिणतता स्वीकार की जावे तो यहां सदा परिणतता का अभाव ही હે ભગવન! જ્યારે તે માયિ મિથ્યાણિ દેવે એવું કહ્યું ત્યારે મેં તેને આ प्रभारी यु “परिणममाणा' पोग्गला परिणया नो अपरिणया" २ yte. પરિણમન કરી રહ્યા હોય, તે પુલ પરિણત જ કહિ શકાય છે. તેને અપरित समय नमः "परिणमंतीति नो पोग्गला परिणया अपरिणया" જે પરિણમી રહ્યા હોય તે પુલ પરિણુત કહેવાય છે અપરિણત કહેવામાં माता नथी ते मा छ " परिणमंति" मेनु उवामा माछ કે તે તેનામાં પરિણમન ક્રિયાના સદુભાવમાં કહેવામાં આવે છે. એ પ્રમાણે डाय तो न्यां परिमननी सा न डाय त्यां ५Y “परिणमंति" में પ્રમાણે કહેવા પ્રસંગ આવે અને જ્યારે ત્યાં પરિણામને સદૂભાવ હોય ત્યારે તે સ્થિતિમાં પરિણતતા પણ અવશ્ય ભાવી છે. એ પ્રમાણે માનવું પડશે કેમકે પરિણમવું હોવા છતાં પણ જો ત્યાં પરિણતતાને સ્વીકાર
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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