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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १६ १० ५ सू० १ देवागमनादिशक्तिनिरूपणम् १३५ करणं देवानां सुलभमेव वाह्यपुद्गलसहकारेणेति भगवत उत्तरमिति । 'इमाई अट्ठ उक्खित्तपसिणदागरणाई पुच्छइ' इमानि अष्टौ उक्षिप्तप्रश्नव्याकरणानि पृच्छति-उत्क्षिप्तानीव उत्क्षिप्तानि अविस्तारयति स्वरूपाणि प्रष्टुं योग्यत्वात् प्रश्नाः व्याक्रियमाणत्वाच्च व्याकरणानि यानि तानि उत्क्षिप्तपश्नव्याकरणानि 'पुच्छित्ता' पृष्ठा 'संभंतियवंदणएणं चंदा' सम्भ्रान्तिकवन्दनेन वन्दते, संभ्रान्ति:-संभ्रम औत्सुक्यं त्या संभ्रान्त्या निवृत्त-संपादितं यद् बन्दकम् तत् संभ्रान्तिकवन्दनकम् नाशवन्दनकेन भगवन्तं शक्रो वन्दते इति 'वंदित्ता' वन्दित्वा 'तमेव जाणविमाणं दुरुहई तमेव यानविमानम् अधिरोहति, येन दिव्येन यानविमानेन आगतस्तमेव विमानमधिरोहति 'दुरुहिचा' अधिरुह्य-विमानोपरि उपविश्य 'जामेव दिस पाउन्भूए' यामेव दिशं प्रादुर्भूतः, यामेव दिशं समाश्रित्य प्रादुर्भूतो यत एव समागत इत्यर्थः 'तामेव दिसं पडिगए' तामेव दिशं प्रतिगतः शझो यानविमानेन आगत्य भगवन्तम् अष्ट प्रश्नान पृष्ट्वा पुनरपि सौत्सुक्यवन्दनादिकं कृत्वा स्वस्थानं गत इति भावः ॥ सु० १॥ सकना । विना ग्रहण किये नहीं। वाह्य पुद्गलों के बहकार से ऐसी क्रियाओं को करना देवों को सुलभ ही है। ऐसा भगवान का उत्तर है। 'इमाई अझ उक्खित्तपसिणवागरणाई पुच्छई' ये प्रश्न उत्क्षिप्त इसलिये हो गये हैं कि ये अविरतन स्वरूपवाले हैं। तथा प्रष्टुं योग्य होने से प्रश्न रूप है एवं व्याक्रियमाण होने से उत्तर देने के योग्य होने से-व्याकरणरूप हैं ।ऐसे इन उत्क्षिप्त, प्रश्नरूप एवं उपाकरण रूप-प्रश्नो को प्रभु ले शक ने पूछा-'पुच्छित्ता' पूछकर 'संभंतियवंदणएणे वंदई' फिर उसने बडे उत्कण्ठा के साथ जल्दी से प्रभु को वन्दना की 'वंदित्ता' वन्दना करके फिर वह 'तमेव जाणविमाणं दुरुहई' जिस दिव्य विमान से आया था उसी दिव्य विमान पर सवार हो गया। લેના સહકારથી એવી ક્રિયાઓનું કરવું દેને સુલભ હોય છે. એ प्रमाणे सपानना उत्तर छ "इमाई अटु उक्खित्तपसिणवागरणाई पुच्छह" આ પ્રશ્નને ઉક્ષિપ્ત એ માટે કહ્યા છે કે તેનું સ્વરૂપ અવિસ્તૃત છે. તથા પૂછવાને ચગ્ય હોવાથી પ્રશ્ન રૂપ છે અને વ્યાક્રિયમાણ હેવાથી (ઉત્તર દેવા ચોગ્ય હોવાથી) વ્યાકરણ રૂપ છે. એવા આ ઉક્ષિણરૂપ અને યાકરણ રૂપ मा प्र शप्रभुन ५७या " पुच्छित्ता" पूछी "संभंतियवदणएण वंदा" ५छी तर पक्षी Getी oral प्रभुन बना ४२N " वंदित्ता" पहन शn पछी त " तमेव जाणविमाण' दुरुहइ"२०य विमानमा असार मान्य त हिय विमान ५२ सवार २४ गया. “दुरुहिता"
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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