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________________ भrades १२२ 'अंवाइड' अव्यादिग्धाम् अक्कां सरलामित्यर्थः, 'सरत्तिगं' सपात्रिकां साधारामित्यर्थः 'अइतिक्खेण परसुणा अवकमेज्जा' अतितीक्ष्णेन परशुना अवक्रामेत् -महारं कुर्या - दित्यर्थः कश्चिद् युवा स्वस्थो बलवान् अतितीक्ष्णपरशुना अनि सरळ काष्ठखण्डोपरि महारं कुर्यात् तत्र सरखतयैव तत्काष्ठस्य खण्डनं भवति तथैव दान्तको sपि योज्यः इति समुदितार्थः । नर से पुरिसे नो महंगाई महंताई सदाई करे' ततः खलु स पुरुषो न महतो महतः शब्दान् करोति प्रत्युत 'सहंताई महं साई दलाई अवाले' महान्ति महान्ति दहानि काष्टखण्डानि अवदारयति - छिवा काष्ठं सखण्डं करोनि 'एनामेत्र गोयमा' एवमेत्र हे गौतम । अचिकणादि गुणविशिष्टकाष्ठछेदनवदेव, समणाणं णिग्गंथाणं' श्रवणानाम् निर्ग्रन्यानाम् 'अहो वादरां' कम्मा' यवा वादराणि स्थूलानि कर्माणि 'सिहिली कमाई " अव्यादिग्ध हो, अपका - सरल हो । 'सपलियं' साधार हो, अतिति क्खेण परसुणा' अतितीक्ष्ण परशु के द्वारा 'अवक्कमेज्जा' काटे तो वह उसे सरलता के साथ काट देता है, इसी बात को आगे स्पष्ट करने के लिये कहा गया है- 'तए णं से पुरिले नो महंताई महंताई साई' इस प्रकार कि उस अतिसरल काष्ठ खण्ड के ऊपर परंशु द्वारा प्रहार करता हुआ वह युवादि विशेषणोंवाला पुरुष काटते समय हुंकार आदिरूप शब्दों का उच्चारण भी नहीं करता है और सरलता के साथ " महंगाई २ दलाई अवालेह" उस काष्ट के बडे २ खण्ड टुकड़े भी कर देता है "एवामेव गोया" इसी प्रकार से है गौतम ! अचिक्कणादिगुणविशिष्ट काष्टच्छेदन की तरह ही "समणाणं निग्गंधानां श्रमण निर्ग्रन्थों के "अहावाघराइ' कम्मा" यथा बादरकर्म " 91 "होय " सपत्तियं" आधारवाणु होय सेवा " अतितिभ्खेण परसुणा" अत्यंत धारवाजी डुडाडीथी " अवक्कमेज्जा " अये तो ते ३ष मे लाउडाने घालीन સરળતાથી કાપી દે છે. એજ વાતને વધારે સ્પષ્ટ કરવા માટે કહે છે કે " तरणं से पुरिसे नो महंताई महंताई सद्दाई " ७५२ डे विशेोषयेोवाणा તે અત્યંત સરળ લાકડાની ઉપર પ્રહાર કરતા એવે તે યુવાદિ વિશેષણે!વાળા પુરૂષ કાપતી વખતે હુકાર વગેરે શબ્દના ઉચ્ચાર કરતા નથી અને सरणताथी " महंताई महंताई दलाई अवालेइ " ते वाडाना भेोटा मोटा ४८४| श्री हे छे, “ एवामेय गोयमा 1 मे रीते हे औतम ! अयिष्याहि शुशुवाजा साहाने डावानी भाई "समणाण' निगंथाण " ચાના अहा बायराई कम्माइ " यथा जाहर "" श्रमाणु निर्थ:" सिढिली कथाई ' " મદ્
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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