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________________ १०८ ___ भगवतीस्त्र इणटे सम?' नायमर्थः समर्थः न समानकर्मक्षपकत्वमुभयोरित्यर्थः । 'जावइयं णं भंते !' यावरू खलु भदन्त ! 'छट्ठभत्तिए समणे णिग्गंथे कम्मं निन्जरेई' षष्ठभक्तक उपवासद्वयकर्ता श्रमणो निर्ग्रन्थः कर्म निर्जरयति, 'एवइयं कम्म निरयेसु नेरइया वाससहस्सेण वा, वाससहस्सेहिं वा, वाससयसहस्सेण वा खवयंति' एतावत्कं कर्म निरयेषु वर्तमाना नैरयिकाः वर्षसहस्रेण वा वर्पसहर्वा वर्षशतसहस्रेण वा क्षपयन्ति, उभयोः समानत्वं भवति नवेति प्रश्नः । भगवानाह‘णो इणढे समझे' नायमर्थः समर्थः। 'जावयं णं भंते !' यावत्कं खलु भदन्त ! निर्गन्ध थोडे से समय में जितने कमों का विनाश कर देता हैं उतने कर्मों का विनाश नरक में वर्तमान नारक जीव क्या एक हजार वर्ष तक में भी कर सकते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'णो इण। सम?' हे गौतम यह अर्थ समर्थ नहीं है, दोनों में कर्मक्षपण के प्रति समानता नहीं है । 'जावयं णं भंते !' हे भदन्त ! जितने 'कम्म' कर्मों की 'छट्ठभत्तिए समणे निग्गथे' दो उपवास करने वाला श्रमण निग्रन्थ 'निज्जरेई' निर्जरा करता है, 'एवइयं फम्म निरएसु नेरक्या वाससहस्सेण वा वाससहस्लेहि वा, वासलयसहस्सेण वा, खवयंति' उतने कर्मों की निर्जरा नरक में वर्तमान नारक जीव एक हजार वर्ष में अनेक हजार वर्षों में या एक लाख वर्ष भर में भी क्या करते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'णो इणढे समढे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । अर्थात् छट्ठ वेला की तपस्या करनेवाला श्रमण निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा અથતુ એક ઉપવાસ કરવાવાળા શ્રમણ નિથ થડા સમયમાં જેટલા કર્મોનો વિનાશ કરે છે. તેટલા કર્મોને વિનાશ નરકમાં રહેલ નારક જીવ શું એક હજાર વર્ષ સુધીમાં પણ કરી શકે છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે"णो इणटे समढे" 3 गौतम मा मर्थ समर्थ नथी अर्थात् भन्नेमा भक्षपातु सरमा नथी. “जावइयं णं भंते !"B Hrd रसा "कम्म" भनी “छभत्तिए समणे निगथे" मे 64वास ४२वावाणा श्रभर नि “निज्जरेइ" नि२॥ ४२ छे. " एवइयं कम्म निरयेसु नेरइया वाससहस्सेण वा, वाससहस्सेहि वा, वाससयसहस्सेण वा खवयंति" सरसा કર્મોની નિર્જરા નરકમાં રહેલ નારક જીવ એક હજાર વર્ષમાં કે હજાર વર્ષમાં કે લાખ વર્ષમાં કરી શકે છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે "णो इणद्वे समढे" हे गौतम! मामय परामर नथा मातो. पास
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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