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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १६ ४० ३ ० १ क्रियाविशेषनिरूपणम् ९७ 'अन्नया कयाइ' अन्यदा कदाचित् - अन्यस्मिन् कस्मिथित्काले 'पुत्राणुपुर्विच चरमाणे' पूर्वानुपूर्व्याचरन् 'जात्र' यावत् 'एगजंबूए समोसढे' एकजंबूके एक जम्बूकनामकोधाने समवसृतः = समागतः । ' जाव परिसा पडिगया' यावत् परिषत् प्रतिगता यावत् पर्पद् निर्गता धर्मकथां श्रुत्वा पर्यत् प्रतिगता । 'भंते ति भगवं गोयमे' हे भदन्त इति संबोध्य भगवान् गौतमः 'समणं भगव महावीरं वदइ नमसई' श्रमण भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति 'वंदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासी' वन्दित्वा नमस्त्विा एवं वक्ष्यमाणप्रकारेणावादीत् 'अणगारस्स णं भंते भादियप्पणी' षष्ठपष्ठेन अनिक्षिप्तेन-पृष्ठ पष्ठेन एतन्नामकतपोविशेषेण अनिक्षिप्तेन निरन्तरेण 'जान आयावेषाणस्स' यावत् आतापयतः - आतापनां कुर्वतः 'तस्स णं' चाहिये। 'तए णं समणे भगयं महावीरे' इसके बाद श्रमण-भगवान् महावीर 'अन्नया कयाह' किसी एक समय 'पुव्वाणुपुर्विच चरमाणे' पूर्वानुपूर्वी से बिहार करते हुए 'जाव' यावत् 'एगजंतूए समोसढे' एक जम्बूक नामके उद्यान में पधारे 'जाव परिक्षा पडिया' यावत् परिषदा पीछे चली गई- अर्थात् प्रभु का आगमन सुनकर परिषदा आई और धर्मकथा सुनकर पीछे गई । 'भंते त्ति भगवं गोधमे ' हे भदन्त | इस प्रकार से प्रभु को संबोधित करके भगवान् गौतम ने 'समणं भगवं महावीरं वंदई नर्मलई' भगवान् महावीर को वन्दना की, नमस्कार किया, वंदित्ता नमत्ति एवं वयासी' बन्दना नमस्कार कर फिर उन्होंने प्रभु में इस प्रकार पूछा- 'अणगारस्स णं भते भावियप्पणी' हे भदन्त ! जो भावतारमा अनगार 'छहूं छणं अणिक्खित्तेणं' निरन्तर छ छड की तपस्या c: " 66 हेतु . " वण्णओ " तेनुं वागुन यूलद्र चैत्य (उद्यान )ना वर्षाननी भाई सम सेवु. "तपणं समणे भगव ́ महावीरे ” ते पछी श्रमाणु लगवान भडा વીર “ अन्नया कयाई " अर्ध को समये " पुत्रवाणुपूवि चरमाणे " पूर्वानु પૂર્વીથી વિહાર કરતા जाव યાત્ एगजम्बू समोसढे " अर्थात् તીથ કરની પર પરાથી એક જબૂ નામના उद्यानभां पधार्या - जाव परिसा पडिगया " प्रभुनु आगमन सांदणीने परिषद अलुना हर्शन ने पहना ४२वा આવી પ્રભુએ તેને ધમદેશના આપી ધદેશના સાભળીને પરિષદ પાતપેાતાના સ્થાને પાછી ગઈ, તે પછી વૈયાવચ્ચ (સેવા) કરતા ગૌતમ સ્વામીએ "भंते चि भगव गोयमे " हे भगवन् । था प्रमाणे प्रभुने संबोधन उरीने भगवान गौतम स्वाभी " समणं भगव' महावीरं वंदइ नमसइ " श्रमण अगवान महावीरने बहना छुरी नमस्झर इर्ष्या " वंदित्ता नमखित्ता एवं वयासी " વધ્રુના નમસ્કાર उरीने तेथे प्रलुने या प्रभारे पूछयु " अणगारस्त्र णं भंते ! भावियप्पणो ” हे भगवन् ! ने लावितमात्मा मणुगार " छट्ठछट्टेणं अणि भ० १३
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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