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________________ भगवती सूत्रे raatara कर्माणि श्रमणायुष्मन्, हे आयुष्मन् श्रमण ! गौतम ! यस्मात् आतङ्कादिना जीवस्यैव मरणं भवति नान्येषाम् अवचेतः कृतान्येव कर्माणि भवन्ति कथमपि अतः कृतत्वं कर्मगामिति भावः । ' से तेणद्वेणं जाव कम्मा कज्जंति' तत्तेनार्थेन यावत् कर्माणि क्रियन्ते भवन्तीति, पत्र यावत् पदेन - जीवाणं चेय कड़ा कम्मा कति नो अचेयकड़ा' इत्यस्य पदसमूहस्य ग्रहणम्, 'एवं नेरहयान वि' एवं नैरविकानामपि, नैरयिकजीवसंबन्धिकर्मविषपोपि अनेनेव प्रकारेण कर्मविषयो ज्ञातव्यः, 'एवं जाच वैमाणियाणं' एवं यावद्वैमानिकानाम्, एवमेव वैमानिजी पर्यन्तं विज्ञेयम् | 'सेवं भंते सेवं भंते' तदेवं भदन्त तदेवं भदन्त, दे भगवन् कर्मणां चेतः संपादनविषये यत् देवानुमियैराख्यातमेतत् एवमेव सर्वमेवसमझाया गया है । 'से तेणद्वेणं जाव कम्मा कज्जंति' इसीलिये हे गौतम ! मैंने पूर्वोक्त रूपसे कहा है कि फर्म जीवकृत हैं, अजीवकृत नहीं हैं क्योंकि आतङ्क (सद्य. घातिरोग) आदि से जीव का ही मरण होता है अन्य अजीवादिका नहीं, अतः वे जैसा कहा है वैसे ही हैं। यहां यावत्पद से 'जीवाणं चेयकडा कम्मा कज्जंति नो अचेयकडा' इस पद का संग्रह हुआ है । 'एवं नेरइयाण वि' इसी प्रकार का कथन नैरयिक जीवों के द्वारा किये गये कर्मों के सम्बन्ध में भी जानना चाहिये । 'एवं जाव वैमाणियाण' और इसी प्रकार का कथन यावत् वैमानिक जीवों तक के सम्बन्ध में भी जानना चाहिये । 'सेवं भ'ते । सेवं भते ! जाव विहरह' हे भदन्त ! कर्म चेतनकृत होते हैं उस विषय में आप देवानुप्रिय ने जो कथन किया है-वह ऐसा ही है है भदन्त ! वह ऐसा द्वारा सभभववाभां भाव्यु छे. " से तेणट्टेणं जाव कम्मा कज्जंति " तेथा हे ગૌતમ 1 મે' પૂર્વાંકત રૂપથી કહ્યું છે કે કમ જીવકૃત છે. અજીવકૃત નથી કેમકે આતંગ (સઘોઘાતી રાગ) વિગેરેથી જીવનું જ મરણ થાય છે. અન્ય અજીवाहिउनु नहि भेथी ते ? उधु ते तेभन है, अडिया यावत् पहथी "जीवाणं चेयकडा कम्मा कज्जति नो अचेयकडा " मा पहना सग्रह थये। छे, " एवं नेरइयाण वि" मेन रीतनु अथन नारीय लवेथे उरेल उनी सय्यधभ या समल बेवु. " एवं जाव वेमाणियाण " मे तनु अथन यावत् વાણુમંતરથી લઈને વૈમાનિક સુધીના જીવાના સબંધમાં પણ સમજી લેવુ. “ सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइ " डे लगवन् ! भु मात्भागे उरेला છે. એ વિષયમાં આપ દેવાનુપ્રિયે જે કથન કર્યુ છે. તે તેમજ છે હું ભગવન 1 તે તેમજ છે. અર્થાત્ સાચુ` છે. એ પ્રમાણે કહીને ગૌતમ સ્વામીએ
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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