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________________ ५८ भगवतीसूत्रे भवतः, एकतः-अपरभागे द्वौ त्रिप्रदेशिको स्कन्धौ भवतः, 'पंचहा कज्जमाणे एगयो चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ छप्पएसिए खंधे भवइ' पञ्चधा क्रियमाणे. दशमदेशिकः स्कन्धः, एकतः-एकभागे चत्वारः परमाणुपुद्गला भवन्ति, एकत:अपरमागे षट्प्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयो तिनि परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवइ, एगयओ पंचपएसिए खंधे भवई' अथवा एकत:एकभागे त्रयः परमाणुपुद्गला भवन्ति, एकतः-अपरभागे द्विपदेशिकः स्कन्धो भवति, एकतः-अन्यभागे पञ्चप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयो तिन्नि परमाणुपोग्गला एगयो तिप्पएसिए, एगयो चउप्पएसिए खंधे भवई' अथवा एकतः-एकभागे त्रयः परमाणुपुद्गलाः भवन्ति, एकतः-अपरभागे त्रिप्रदेशिका स्कन्धो भवति एकतः-अन्यभागे चतुष्पदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयो विप्रदेशिक स्कन्ध होते हैं और एक दूसरे भाग में दो त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होते हैं-'पंचहा कज्जमाणे चत्तारि परमाणुपोग्गला, एगयओ छपएसिए खंधे भवह' यह दशप्रदेशिक स्कंध जप पांच भागों में विभक्त किया जाता है-तब एकभाग में चार परमाणुपुद्ग होते हैं, एवं एकभाग में छहप्रदेशिक स्कन्ध होता है ' अहवा-'एगयओ तिनि परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवह' अथवा-एक भाग में तीन परमाणुपुद्गल होते हैं, और एकभाग में द्विप्रदेशिक स्कंध होता है, 'एगयो पंचपएसिए खंधे भवई' एवं एक अन्यभाग में पंच प्रदे. शिक स्कंध होता है । ' अहवा-एगयओ तिभि परमाणुपोग्गला, एगयओ तिप्पएलिए, एगयो चउप्पएसिए खंधे भवइ' अथवा एकभाग में तीन परमाणुपुद्गल होते हैं, एक दूसरे भाग में एक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होता है, और एक अन्यभाग में एक चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध होता ४ध ३५ मे विमाणे थाय छे. "पंचहा कन्जमाणे एगयओ चत्तारि परमाणु-. पोग्गला, एगयओ छप्पएसिए खंघे भव" ते ४ प्रशि २४धना ल्यारे પાંચ વિભાગે કરવામાં આવે છે, ત્યારે એક પરમાણુ યુદ્ગલવાળા ચાર विमा भने ७ प्रशि४ मे २४५ ३५ मे विHIT थाय छे. " अहवाएगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला, एगयओ दुप्पएसिए खंधे भवइ, एगयओ पंच पएसिए खंधे भवइ" अथवा रे मे परमार, पगलवाणा विमाना, ઢિપ્રદેશિક રકંધ રૂપ એક વિભાગ અને પાંચ પ્રદેશિક સ્કંધ રૂપ એક વિભાગ मन छ. " अहवा-एगयओ तिन्नि परमाणुपोग्गला, एगयओ तिप्पएसिए, एगयओ चउप्पएमिए खंधे भवइ" अथवा मे मे पुस ५२भावामा ऋण વિભાગે ત્રિપ્રશિક સ્કંધ રૂપ એક વિભાગ અને ચાર પ્રદેશિક સ્કંધરૂપ
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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