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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० ४ सू० १ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् ५७. 'अहवा एगयो परमाणुपोग्गले एगयओ दुप्पएसिए, एगयो तिप्पएसिए, एंग। यो चउप्पएसिए खंत्रे भवइ' अथवा एकतः-एकभागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकतः अपरभागे द्विपदेशिका स्कन्धो भवति, एकतः-अन्यभागे त्रिमदेशिकः स्कन्धो भवति, एकता-अन्यभागे चतुष्पदेशिका स्कन्धो भवति, 'अहवा एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयो निमि तिप्पएसिया खंधा भवंति, अथवा एकत:-एकमागे परमाणुपुद्गलो भवति, एकता-अपरमागे त्रयस्त्रिपदेशिकाः स्कन्धा भवन्ति, 'अहवा एगयओ तिन्नि दुप्पएसिया खंधा, एगयो चउप्पएसिए खंधे भवइ' अथवा एकत:-एकमागे त्रयो द्विप्रदेशिकाः स्कन्धा भवन्ति, एकत्त:-अपरभागे चतुप्रदेशिकः स्कन्धो भवति, 'अइवा एगयो दो दुप्पएसिया खंधा, एगयओ दो तिप्पएसिया खंधा भवंति' अथवा एकत:-एकभागे द्वौ द्विपदेशिको स्कन्धों 'अहवा-एगयओ परमाणुपोग्गले, एगपओ दुप्पएसिए, एगयओ तिप्पएसिए एगयओ चउप्पएसिए खंधे भव' अथवा-एकभाग में एक परमाणुपुद्गल होता है, एकभाग में विप्रदेशिक स्कन्ध होता है एक भाग में त्रिप्रदेशिक स्कंध होता है, अन्यभाग में एक चतुष्पदेशिक स्कन्ध होता है। 'अहवा-एगयो परमाणुपोग्गले, एगयो तिमि तिप्पएसिया खंधा भवंति' अथवा-एक भाग में एक परमाणुपुद्गल होता है एवं एक भाग में तीन त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होते हैं-'अहवा' एगयओ.तिनि दुप्पएसिया खंधा एगयो चउप्पएसिए खंधे भवह' . अथवा-एकभाग में तीन द्विप्रदेशिक स्कन्ध होते हैं, एवं एक भाग में एक चतुष्प्रदेशिक स्कंध होता है। 'अहवा-एगयओ दो दुप्पएसिया खंधा, एगयओ दो तिप्पएसिया खंधा भवंलि' अथवा-एकभाग में दी में विभाग याय छे. "अहवा-एगयो परमाणुपोग्गले, पगयओ दुप्पएसिए, एगयओ तिप्पएसिए, एगयो चउप्पएसिए खंधे भवई" मथ मे ५२मार પગલે રૂપ એક વિભાગ, દ્ધિપ્રદેશિક સ્કંધ રૂપ બીજે વિભાગ, ત્રિપ્રદેશિક ધરૂપ ત્રીજો વિભાગ અને ચાર પ્રશિક સ્કંધરૂપ થે વિભાગ થાય છે. "अहवा-एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ तिन्नि तिप्पएसिया खंधा भवति" અથવા એક પરમાણુ પુલવાળે એક વિભાગ અને ત્રણ વિદેશિક કંધ ३५.१ विमा याय छ " अहवा- एगयमो तिन्नि दुप्पएसिया खंधा, एगयओ चरप्पएसिए खंधे भवइ " अथवा विशि: त्र २४३५ ३ विभाग અને ચાર પ્રદેશિક ધ રૂપ એક વિભાગ થાય છે. ." अहवा-एगयओ दो दुप्पएसिया खंधा, एगयओ दो. तिप्पएसिया खंधा भवति" मया विप्रहशिम ४५ ३५ विभाग मन, त्रिशि में 'भ०८
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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