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________________ ७०८ - भगवतीसूत्र से जहा नामए- कूडागारसाला सिया दुहओ लित्ता गुत्ता गुत्तदुवारा, जहा रायपसेणइज्जे जाव दुधारवयणाई पिहेइ' हे गौतम ! तद्यथा नाम इवि-वाक्यालङ्कारे, काचित् कुटाकारशाला-पर्वत शिखराकारशाला स्यात् भवेत् उभयतः-आभ्यन्तरतो वाह्यतश्च लिप्ता-गोमयमृत्तिकादिना, गुप्ता चतुर्दिशु आच्छादिता, गुप्तद्वारागुप्त-पिहितं, द्वार-गवाक्षादिकं यस्या सा तथाविधा यथा राजप्रश्नीये प्रतिपा दिता तथैवात्रापि प्रतिपादनीया, यावत्-तस्यास्तादृशविशेषविशिष्टायाः कुटाकारशालायाः द्वारकपाटान् कश्चित् पिधत्ते-पावृणोति, तत्प्रवेशद्वारकपाटान् संघटयतीत्यर्थः 'पिहित्ता तीसे कूडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए, जहन्नेणं एको वा, दो वा, तिनि वा, उकोसेणं पदोवसहस्सं पलीवेज्जा' वस्याः कूडागारशालाया: द्वारकपाटान् पिधाय तस्याः कूटाकारशालाया बहुमध्यदेशभागे-सममध्यप्रदेशे, कहते हैं-'गोयमा! से जहा नामए कूडागारसाला सिया' हे गौतम ! कल्पना करो कि कोई एक पर्वत के शिखर जैसी अकारवाली कूटागार शाला हो, यहां "नाम" यह पद वाक्यालङ्कार में प्रयुक्त हुआ है। 'दहओलित्ता, गुत्ता, गुत्तद्वारा, जहा रायप्पसेणइज्जे,जावदवारवयणाई पिहेइ' वह कूटागारशाला भीतर बाहर दोनों जगह में गोमय आदि से लिप्त हो, चारों दिशाओं में आच्छादित हो, इसके गवाक्ष आदि दरवाजे बन्द हों-इस विषय में जैसा कथन राजप्रश्नीय सूत्र में आया है-वैसा ही कथन यहां पर इसका करना चाहिये ऐसे विशेषणों वाली उस कूटागारशाला का प्रवेशद्वार कोई व्यक्ति बन्द कर दे 'पिहिता तीसे कूडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए जहन्नेणं एकको वा, दो वा, तिन्निवा, उक्कोसेणं पदीवसहस्सं पलीवेजा' और बन्द करके वह उसके भीतर मध्यभाग में कम से कम एक दीपक, दो दीपक, तीन महावीर प्रसुन उत्तर-" गोयमा ! से जहा नामए कूडागारसाला सिया" હે ગૌતમ ! ધારે કે કેઈ એક પર્વતના શિખર જેવા આકારની કૂટાગાર सा छे. मी " नाम" मा ५४ पाया ४२मा १५रायु छ "दुहओ ,लित्ता, गुत्ता, गुत्तदुवारा, जहा रायपसेणइज्जे जाव दुवारवयणाई विहेइ". ગૌતમ! તે કૂટાગારશાલા અંદર અને બહાર છાણ આદિ વડે લીધેલી છે. ચારે દિશાઓમાં આચ્છાદિત છે, તેનાં ગવાક્ષ, દરવાજા આદિ બંધ છે આ વિષયને અનુલક્ષીને જેવું કથન રાજપ્રક્ષીય સૂત્રમાં કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ તેનું વર્ણન અહીં પણું કરવું જોઈએ. આ વિશેષણવાળી કૂટાગારशालानु प्रवेशद्वार र व्यतिम री . “ पिहिता तीसे कूडागारसालाए बहुमज्झदेखभाए जहन्नेणं एको वा, दो वा, तिन्नि वा, उक्कोसेणं पदीवसहस्सं
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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