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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१३ उ०४ सू०१२ अस्तिकायनिपदनद्वारनिरूपणम् ७०७ अब उपवेष्टु वा, त्ववर्तयितुं-आलोदितुं वा ? इति प्रश्ना, तत्र 'चक्किया' इति 'शक्नुयात्' इत्यर्थे देशीयः शब्दो वोध्या, भगवानाह-'णो इणढे समटे ?' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः-धर्मास्तिकायादित्रये कश्चिदपि पुरुषः उपवेशनादिकं यावत् स्वरवर्तनं कर्तुं समर्थों नास्ति तेप ममूर्तत्वात् , किन्तु 'अणंता पुण तस्थ जीवा ओगाढा' तत्र धर्मास्तिकायादौ, अनन्ताः पुनर्जीवा अवगाढा भवन्ति । गौतम स्तत्र कारणं पृच्छति-'से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चा-एयंसि णं धम्मस्थिकायंसि जाव आगासस्थिकार्यसि णो चक्किया केई आसात्तए वा, जाव ओगाढा?' हे भदन्त । तत्केनार्थेन एवमुच्यते-एतस्मिन् खलु धर्मास्तिकाये यावत्-अधर्मास्तिकाये, आकाशास्तिकाये नो शक्नुयात् कश्चित्पुरुषः आसितुवा, यावत् स्थातुं वा, निपत्तुं वा, त्वग्वर्तयितुंवा, अनन्ताः पुनस्तत्र जीवा अप्रगाढा इति ? भगवानाह-'गोयमा! लिये-लेटने के लिये 'चक्किया' समर्थ हो सकता है ? 'चकिया' यह देशीय शब्द है। उत्तर में प्रभु कहते हैं-'णो इणढे समढे' हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है-अर्थात् धर्मास्तिकायादिक में कोई भी पुरुष उपवेशनादिक क्रिया करने में समर्थ नहीं हो सकता है क्योंकि ये धर्मास्तिकायादिक अमूर्तद्रव्य हैं । पर 'अणंता पुण तत्थ जीवा ओगाढा' अनन्तजीव वहाँ अवगाढ होते हैं । अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ, एयंसि णं धम्मस्थिकार्यसि जाव आगासस्थिकार्यसि णो चक्कियाकेई आसइत्तए वा जाव ओगाहा' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि धर्मास्तिकायादिक तीन में कोई भी पुरुष उपवेशनादि क्रिया कर सकने में समर्थ नहीं होता है । पर अनन्त जीव वहां अवगाढ हैं ? इसके उत्तर में प्रभु भंडावीर प्रभुन। उत्तर-" णो इणढे सम?" गौतम ! मेमनी શકતું નથી એટલે કે ધર્માસ્તિકાયાદિકમાં કઈ પણ કષ બેસવા, ઉઠવાદિ ક્રિયાઓ કરવાને સમર્થ નથી, કારણ કે ધમસ્તિકાયાદિક યે અમૂર્ત છે. પરંતુ "अणंता पुण तत्य जीवा ओगाढा" सनत त्या माढ (स्थित) डाय छे. गौतम स्वामीना प्रश्न- 'सेकेणट्रेणं भंते ! एवं वुच्चइ, एयंसिणं धम्मत्थिकार्यसि जाव आगामस्थिक्रायसि णो चकिया केई आसइत्तए वा जाव ओगाढा" હે ભગવન ! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે ધર્માસ્તિકાયાદિક ત્રણમાં કેઈ પણ પુરુષ ઉપવેશન આદિ ક્રિયાઓ કરવાને સમર્થ નથી પરંતુ અનંતજી ત્યાં અવગાહ છે?
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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